ध्यानहेयास्तद्वृत्तय: ।। 11 ।।
शब्दार्थ :- तद् वृत्तय:, ( उन क्लेशों की वृत्तियाँ ) ध्यान, ( ध्यान के द्वारा ) हेया, ( नष्ट अथवा खत्म करने योग्य होती हैं । )
सूत्रार्थ :- उन सभी क्लेशों की जो स्थूल वृत्तियाँ हैं । उनको ध्यान के द्वारा नष्ट किया जा सकता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में सूक्ष्म वृत्तियों को भी त्यागने का उपाय बताया गया है ।
साधक अपने सभी क्लेशों की स्थूल वृत्तियों को क्रियायोग आदि से निर्बल बना देता है । लेकिन वह वृत्तियाँ सूक्ष्म रूप में मौजूद रहती हैं । उन क्लेशों की सभी वृत्तियों के सूक्ष्म रूप को ध्यान के द्वारा समाप्त अथवा दग्धबीज किया जा सकता है ।
उदाहरण स्वरूप :- जब कोई वस्त्र ( कपड़ा ) अत्यधिक गन्दा हो जाता है । तो हम उसकी गन्दगी को हटाने से पहले उसके मैल को हल्का करने के कुछ समय के लिए वाशिंग पाऊडर ( सर्फ ) में भिगो देते हैं । जिससे उसका बाहरी अथवा स्थूल मैल गलकर नष्ट हो जाता है । उसके बाद हम उसके सूक्ष्म मैल को दूर करने के लिए उसपर साबुन लगाते हैं । और उसके बाद कपड़े धोने की ब्रश से उसको रगड़- रगड़ कर सारे सूक्ष्म अर्थात छोटे से छोटे मैल को भी बाहर निकाल देते हैं ।
ठीक इसी प्रकार हम पहले क्रियायोग के द्वारा अपने क्लेशों की स्थूल अर्थात बाहरी वृत्तियों को सूक्ष्म अर्थात हल्का करते हैं । और उसके बाद उन सूक्ष्म वृत्तियों को ध्यान के द्वारा बिलकुल दूर कर देते हैं ।
अतः सबसे पहले उन सभी क्लेश वृत्तियों को क्रियायोग से सूक्ष्म करना चाहिए और बाद में उन सूक्ष्म हुई वृत्तियों को ध्यान द्वारा बिलकुल समाप्त अर्थात दग्धबीज कर देना चाहिए।
Thanku so much sir??
Easy explanation THANK you sir
Nice guru ji
Pranaam Sir! ??Kleshas are the biggest problem in our lives….. Removing them can help us lead a better life and you explained it well.
nice example and nice explanation of kirya yog and meditation guru ji.
?Prnam Aacharya ji! Dhanyavad ?