अस्तु वा मास्तु वा मुक्तिरत्रै वाखण्डितं सुखम् ।
लयोद् भवमिदं सौख्यं राजयोगादवाप्यते ।। 78 ।।
भावार्थ :- साधक को मोक्ष की प्राप्ति हो या न हो लेकिन राजयोग समाधि के परिणाम स्वरूप उसके चित्त में लय के उत्पन्न होने से उसे बिना खण्डित हुए ( निरन्तर मिलने वाले ) आनन्द की प्राप्ति होती है ।
राजयोग का महत्व
राजयोगमजानन्त: केवलं हठकर्मिण: ।
एतानभ्यासिनो मन्ये प्रयासफलवर्जितान् ।। 79 ।।
भावार्थ :- जो योगाभ्यासी राजयोग को नहीं जानते और केवल हठयोग साधना का ही अभ्यास करते रहते हैं । मैं उन सभी साधकों के परिश्रम को निष्फल या निरर्थक ( जिससे किसी प्रकार के फल की प्राप्ति नहीं होती ) मानता हूँ ।
उन्मन्यवाप्तये शीघ्रं भ्रुध्यानं मम सम्मतम् ।
राजयोगपदं प्राप्तुं सुखो पायोऽल्पचेतसाम् ।
सद्य: प्रत्ययसन्धायी जायते नादजो लय: ।। 80 ।।
भावार्थ :- जो साधक साधना में शीघ्र सफलता प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें अपनी दोनों भौहों के बीच में ध्यान लगाना चाहिए । इससे साधक को शीघ्र उन्मनी भाव ( समाधि ) की प्राप्ति होती है । ऐसा मेरा मानना है । इसके अलावा जिन योग साधकों को योग विषय में कम ज्ञान है या जो योग साधना को ज्यादा नहीं जानते। उनके लिए समाधि प्राप्ति हेतु नादयोग की साधना शीघ्र ही सुख व विश्वास उत्पन्न करवाने वाली सिद्ध होती है ।
नादानुसन्धानसमाधिभाजाम् योगीश्वराणां हृदि वर्धमानम् ।
आनन्दमेकं वचसामगम्यम् जानाति तं श्रीगुरुनाथ एक: ।। 81 ।।
भावार्थ :- जिन साधकों ने नादानुसन्धान के द्वारा समाधि की प्राप्ति हो जाती है । उन सभी श्रेष्ठ योगियों के हृदय में एक विशेष प्रकार के अद्भुत व अवर्णनीय ( जिसका वर्णन वाणी के द्वारा न किया जा सके ) आनन्द की प्राप्ति होती है । इस आनन्द को तो वह साधक ही जानता है जिसने समाधि के द्वारा उसे प्राप्त किया है । उसके अतिरिक्त केवल श्रीगुरुनाथ अर्थात् गुरु गोरक्षनाथ ही जानते हैं ।
कर्णौ पिधाय हस्ताभ्यां यं शृणोति ध्वनिं मुनि: ।
तत्र चित्तं स्थिरी कुर्याद्यावत् स्थिरपदं व्रजेत् ।। 82 ।।
भावार्थ :- जो योग साधक अपने दोनों हाथों से दोनों कानों को बन्द करने पर उत्पन्न होने वाली ध्वनि को सुनकर उसी पर अपने चित्त को लगा लेता है । वही साधक स्थिरपद ( मोक्ष ) को प्राप्त करता है ।
अभ्यस्यमानो नादोऽयं बाह्यमावृणुते ध्वनिम् ।
पक्षाद्विक्षेपमखिलं जित्वा योगी सुखी भवेत् ।। 83 ।।
भावार्थ :- ऊपर वर्णित नादयोग विधि का अभ्यास करने पर साधक की सभी बाहरी ध्वनियाँ रुक जाती हैं । जिसके फलस्वरूप साधक मात्र पन्द्रह ( 15 ) दिनों में ही सभी बाधाओं पर विजय प्राप्त करके सुखी हो जाता है ।
श्रूयते प्रथमाभ्यासे नादो नानाविधो महान् ।
ततोऽभ्यासे वर्धमाने श्रूयते सूक्ष्मसूक्ष्मक: ।। 84 ।।
भावार्थ :- जब साधक प्रारम्भ में नादयोग साधना का अभ्यास करता है तो उसे अनेकों प्रकार की तीव्र ध्वनियाँ सुनाई देती हैं । उसके कुछ समय बाद जब अभ्यास मजबूत हो जाता है तो साधक को सूक्ष्म से सूक्ष्मतर ध्वनियाँ भी सुनाई देती हैं ।
आदौ जलधिजीमूतभेरीझर्झरसम्भवा: ।
मध्ये मर्दलशङ्खोत्था घण्टा काहल जास्तथा ।। 85 ।।
भावार्थ :- साधना के प्रारम्भ में साधक को समुद्र की गर्जना, मेघ की गर्जना ( बादलों की गड़गड़ाहट ), भेरी नामक वाद्ययंत्र व झर्झर ( झरने ) के समान ध्वनियाँ सुनाई देती हैं । साधना काल के बीच में साधक को मर्दल ( ढोल ), शंख, घण्टा व घड़ियाल ( मगरमच्छ ) आदि के समान ध्वनियाँ सुनाई देती हैं ।
अन्ते तु किङ्किणीवंशवीणाभ्रमरनि:स्वना: ।
इति नानाविधा नादा: श्रूयन्ते देहमध्यगा: ।। 86 ।।
भावार्थ :- नादयोग साधना के अन्त में साधक को घुंघुरू, वंशी ( बाँसुरी ), वीणा ( अत्यन्य मनमोहक वाद्ययंत्र ) और भँवरे के समान ध्वनियाँ व सुषुम्ना में उत्पन्न होने वाले अनेक प्रकार के स्वर सुनाई पड़ते हैं ।
Thanks sir
Thank you sir for making my morning good ,bless me I can get success in nadyoge.
Have a wonderful Sunday ??
धन्यवाद।