विधिवत् प्राणसंयामैर्नाडीचक्रे विशोधिते ।

सुषुम्नावदनं भित्वा सुखाद्विशति मारुत: ।। 41 ।।

मारुते मध्यसंचारे मन:स्थैर्यं प्रजायते ।

यो मन: सुस्थिरीभाव: सैवावस्था मनोन्मनी ।। 42 ।।

 

भावार्थ :- प्राणायाम को विधिपूर्वक करने से जब हमारा नाड़ी समूह शुद्ध हो जाता है । तब प्राणवायु सुषुम्ना नाड़ी के मुख का भेदन करके उसके अन्दर प्रवेश कर जाता है । प्राण के सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करने से मन में स्थिरता आती है जिससे मन पूरी तरह से स्थिर हो जाता है । मन के इस प्रकार पूरी तरह से स्थिर हो जाने को मनोन्मनी अवस्था या समाधि कहते हैं ।

 

विशेष :- यहाँ पर समाधि को ही मनोन्मनी अवस्था कहा गया है ।

 

तत्सिद्वये विधानज्ञाश्चित्रान्कुर्वन्ति कुम्भकान् ।

विचित्रकुम्भकाभ्यासाद् विचित्रां सिद्धिमाप्नुयात् ।। 43 ।।

 

भावार्थ :- अनेक प्रकार के प्राणायामों की विधि को जानने वाले योगी सिद्धि अर्थात समाधि की प्राप्ति के लिए अलग- अलग प्रकार के प्राणायामों का अभ्यास करते हैं । इस प्रकार अनेक प्रकार के प्राणायाम के करने से साधक को अनेक प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है ।

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  1. Dr. Sab ji se upar ki koi or bhi etiti h kya ji h to hame bhi btao ji ham bhi aapk pass aa jate h ji

    धन्यवाद जी

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