नेति क्रिया के लाभ
कपालशोधनी चैव दिव्यदृष्टिप्रदायिनी ।
जत्रूर्ध्वजातरोगौघं नेतिराशु निहन्ति च ।। 31 ।।
भावार्थ :- नेति क्रिया के अभ्यास से पूरे कपाल प्रदेश ( मस्तिष्क ) की शुद्धि होती है, दिव्य दृष्टि की प्राप्ति होती है और इसके अतिरिक्त नेति हमारे दाढ़ों अर्थात जबड़े से ऊपर होने वाले सभी रोगों को नष्ट करती है ।
विशेष :- सामान्य रूप से नेति के दो अथवा तीन प्रकारों का वर्णन हमें सुनने को मिलता है । लेकिन हठप्रदीपिका व घेरण्ड संहिता दोनों ही ग्रन्थों में नेति को एक ही प्रकार की माना है । जिसे हम सामान्यत सूत्र नेति कहते हैं । वर्तमान समय में योग के आचार्यों ने नेति के कई प्रकारों का वर्णन अपनी पुस्तकों में किया है । जिससे प्रायः विद्यार्थियों के सामने भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है । अतः यौगिक ग्रन्थों के अनुसार नेति एक ही प्रकार की है जिसे सूत्र नेति कहा है । सूत्र नेति के अलावा आधुनिक समय में नेति के विभिन्न प्रकार प्रचलन में हैं – जल नेति, रबड़ नेति, दुग्ध नेति व घृत नेति आदि । इन सभी में जल नेति का प्रयोग सूत्र नेति के पूर्व कर्म ( प्री- वर्कआउट ) के रूप में किया जाता है जो कि तर्कसंगत है । दुग्ध व घृत नेति का प्रयोग किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाता है । लेकिन इन सभी में रबड़ नेति का प्रयोग कई प्रकार से हानिकारक हो सकता है । सबसे पहले तो रबड़ नेति रबड़ की बनी होती है और रबड़ के निर्माण में बहुत से हानिकारक कैमिकलों का प्रयोग किया जाता है । जो निश्चित रूप से शरीर के लिए हानिकारक होते हैं । दूसरा रबड़ में एक प्रकार की दुर्गन्ध आती है और हमारी नासिका बहुत ही संवेदनशील अंग है । जिससे नासिका में एलर्जी होने का भय बना रहता है । तीसरा रबड़ नेति रबड़ की बनी होती है जिसका टूटने का खतरा भी रहता है । अतः उपर्युक्त कारणों से यह मेरी निजी सलाह है कि योग के साधक को रबड़ नेति का प्रयोग नहीं करना चाहिए । बाकी यह सभी विद्वानों की चर्चा का विषय भी है ।
त्राटक क्रिया
निरीक्षेन्निश्चलदृशा सूक्ष्मलक्ष्यं समाहित: ।
अश्रुपातनपर्यन्तमाचार्यैस्त्राटकं स्मृतम् ।। 32 ।।
भावार्थ :- एकाग्र होकर अपनी आँखों से किसी भी सूक्ष्म लक्ष्य ( जो दिखाई देता हो ) को तब तक देखें जब तक आँखों से पानी ( आँसू ) न आ जाए । योग आचार्यों ने इस क्रिया को त्राटक कहा है ।
विशेष :- त्राटक क्रिया का अभ्यास हम किसी दीपक या मोमबत्ती के ऊपर कर सकते हैं अथवा किसी एक बिन्दु पर भी इसका अभ्यास किया जा सकता है । आजकल आपको बाजार से त्राटक के लिए स्टैण्ड भी आसानी से उपलब्ध हो सकता है । मोतियाबिंद के रोगियों को दीपक या मोमबत्ती पर त्राटक का अभ्यास नहीं करना चाहिए । जिन व्यक्तियों को नजर का चश्मा लगा हो उनको त्राटक का अभ्यास चश्मा उतार कर करना चाहिए ।
त्राटक क्रिया के लाभ
मोचनं नेत्ररोगाणां तन्द्रादीनां कपाटकम् ।
यत्नतस्त्राटकं गोप्यं यथा हाटकपेटकम् ।। 33 ।।
भावार्थ :- त्राटक का अभ्यास करने से व्यक्ति के नेत्र सम्बन्धी सभी रोगों का नाश हो जाता है और यह साधक में तन्द्रा व आलस्य को आने से इस तरह से रोकता है जैसे दरवाजा ( किवाड़ ) हवा को अन्दर आने से रोकता है । इसीलिए त्राटक के अभ्यास को बहुमूल्य रत्नों की तरह छिपाकर करने योग्य बताया गया है ।
अमन्दावर्त्तवेगेन तुन्दं सव्यापसव्यत: ।
नतांसो भ्रामयेद् एषा नौलि: सिद्धै: प्रचक्ष्यते ।। 34 ।।
भावार्थ :- अपने कंधों को थोड़ा आगे की ओर झुकाकर पेट को भँवर की तरह पूरी तेज गति के साथ दायीं तरफ से बायीं तरफ घुमाने को योगी पुरुष नौलि क्रिया कहते हैं ।
नौलि के लाभ
मन्दाग्नि सन्दीपनपाचनादिसन्धायिकानन्दकरी सदैव ।
अशेषदोषामयशोषणी च हठक्रिया मौलिरियं च नौलि ।। 35 ।।
भावार्थ :- नौलि क्रिया हमारी मन्द ( खराब या कमजोर ) जठराग्नि को तेज करके पांचन शक्ति को मजबूत करती है । इसका अभ्यास हमेशा आनन्द प्रदान करवाने वाला होता है । साथ ही यह शरीर के सभी दोषों को समाप्त करती है । नौलि क्रिया हठयोग की सभी शुद्धि क्रियाओं में श्रेष्ठ है । ऐसा स्वामी स्वात्माराम का मानना है ।
विशेष :- नौलि के अभ्यास से पहले साधक को उड्डीयान बन्ध का अभ्यास करना चाहिए ।
Thanku sir ??
धन्यवाद।