धौति क्रिया

 

चतुरङ्गुलविस्तारं हस्तपञ्चदशायतम् ।

गुरु प्रदिष्ट मार्गेण सिक्तं वस्त्रं शनैर्ग्रसेत् ।

पुनः प्रत्याहरेच्चैतदुदितं धौतिकर्म तत् ।।  24 ।।

 

भावार्थ :- धौति के लिए सबसे पहले चार अँगुल चौड़ा ( लगभग तीन से चार इंच ) और पन्द्रह (15) हाथ लम्बा ( लगभग बाईस फीट ) सूती वस्त्र लें । उसे पानी में डालकर गीला करलें । फिर गुरु द्वारा बताई विधि के अनुसार उस कपड़े को धीरे- धीरे गले से निगलते हुए अपने पेट में ले जाएं । कुछ समय पश्चात धीरे- धीरे उसे वापिस निकाल लें ।

यह प्रक्रिया धौति कर्म कहलाती है । इस धौति क्रिया को वस्त्र धौति के नाम से जाना जाता है ।

 

धौति क्रिया के लाभ

 

कास – श्वास – प्लीहा – कुष्ठं कफरोगाश्च विंशति: ।

धौतिकर्मप्रभावेण प्रयान्त्येव न संशय: ।। 25 ।।

 

भावार्थ :- धौति क्रिया के प्रभाव अर्थात अभ्यास से नि:संदेह खाँसी, दमा, तिल्ली व कुष्ठ आदि चर्म रोग व इसके अलावा बीस प्रकार के कफ रोगों का भी नाश होता है ।

 

विशेष :- हठयोग के अनुसार कफ के असन्तुलित होने से से बीस (20) प्रकार के रोग होते हैं ।

 

गजकरणी क्रिया

 

उदरगतपदार्थमुद्वमन्ति

पवनमपानमुदीर्य कण्ठनाले ।

क्रमपरिचयवश्यनाडिचक्रा

गजकरणीति निगद्यते हठज्ञै: ।। 26 ।।

 

भावार्थ :-  योगी को अभ्यास द्वारा क्रमानुसार अपने नाड़ीतन्त्र पर नियंत्रण प्राप्त करके अपानवायु को ऊपर कण्ठ तक लाकर, उसकी सहायता से पेट में स्थित पदार्थों ( बिना पचे हुए अन्न व जल ) को वमन अर्थात बाहर निकालना गजकरणी क्रिया कहलाती है ।

 

विशेष :- यहाँ पर गजकरणी क्रिया का उल्लेख किया गया है । यह भी एक प्रकार की शुद्धि क्रिया है । लेकिन इसे मुख्य शुद्धि क्रियाओं में नहीं रखा गया है । कुछ भाष्यकारों ने इस श्लोक का वर्णन सभी षट्कर्मों के बाद किया है ।

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