भक्तियोग समाधि

 

स्वकीयहृदये ध्यायेदिष्टदेव स्वरूपकम् ।

चिन्तयेद् भक्तियोगेन परमाह्लादपूर्वकम् ।। 14 ।।

आनन्दाश्रुपुलकेन दशाभाव: प्रजायते ।

समाधि: सम्भवेत्तेन सम्भवेच्च मनोन्मनी ।। 15 ।।

 

 भावार्थ :-  अपने हृदय प्रदेश में अपने इष्टदेव का ध्यान करें और परमानन्द के साथ भक्तियोग का चिन्तन करना चाहिए ।

जब साधक का हृदय परमानन्द के अश्रुओं से उदित हो जाता है तब उसकी भावना विशेष प्रकार के भक्तिभाव से परिपूर्ण हो जाती है । जिससे मनोन्मनी ( मन में उन्मनी भाव से ) समाधि की प्राप्ति हो जाती है ।

इसे भक्तियोग समाधि कहा जाता है ।

 

 

विशेष :-  भक्तियोग समाधि में साधक अपने हृदय में किसका ध्यान करता है ? उत्तर है अपने इष्टदेव का । भक्तियोग से कौन सी समाधि प्राप्त होती है ? उत्तर है मनोन्मनी समाधि ।

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  1. ॐ गुरुदेव!
    आपका हृदय से परम आभार।

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