रसानन्दयोग समाधि वर्णन

 

साधनात् खेचरीमुद्रा रसनोर्ध्वंगता यदा ।

तदा समाधिसिद्धि: स्याद्धित्वा साधारणक्रियाम् ।। 11 ।।

 

भावार्थ :-  खेचरी मुद्रा की साधना ( अभ्यास ) करने पर साधक की जीभ ऊपर की ओर चली जाती है । जिसके परिणामस्वरूप साधक बिना किसी अन्य सामान्य क्रियाओं के ही समाधि को सिद्ध कर लेता है ।

इसे रसानन्दयोग समाधि कहा गया है ।

 

 

लयसिद्धि योग समाधि

 

योनिमुद्रां समासाद्य स्वयं शक्तिमयो भवेत् ।

सुश्रृङ्गाररसेनैव विहरेत् परमात्मनि ।। 12 ।।

आनन्दमय: समभूत्वा ऐक्यं ब्रह्मणि सम्भवेत् ।

अहं ब्रह्मेति चाद्वैतं समाधिस्तेन जायते ।। 13 ।।

 

भावार्थ :-  योनिमुद्रा के द्वारा साधक स्वयं को शक्तिशाली बनाकर परमात्मा के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करे । आनन्दमय होकर ब्रह्मा के साथ एकीकरण का भावना करने से ‘मैं ही ब्राह्म हूँ’, इस प्रकार की अद्वैत ( एक ही भाव अथवा अभेद ) समाधि की प्राप्ति होती है ।

इसे लयसिद्धि योग समाधि कहते हैं ।

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  1. ॐ गुरुदेव!
    आपको हृदय से आभार।

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