उज्जायी प्राणायाम विधि वर्णन
नासाभ्यां वायुमाकृष्य मुखमध्ये च धारयेत् ।
हृद्गलाभ्यां समाकृष्य वायुं वक्त्रे च धारयेत् ।। 68 ।।
मुखं प्रक्षाल्य सवन्द्य कुर्याज्जालन्धरं तत: ।
आशक्ति कुम्भकं कृत्वा धारयेदविरोधात: ।। 69 ।।
भावार्थ :- हृदय प्रदेश व गले का संकोच ( सिकोड़ते ) करते हुए दोनों नासिकाओं से वायु को अन्दर भरके उसे मुख के बीच में ही धारण ( ग्रहण ) करले । इसके बाद मुख में स्थित वायु को बाहर निकाल कर, दोबारा से वायु को अन्दर भरकर जालन्धर बन्ध लगायें और वायु को बिना किसी विशेष प्रयास के कुछ समय तक ही अन्दर रोकें ।
विशेष :- उज्जायी प्राणायाम का सकारात्मक प्रभाव हमारी थायरॉइड ग्रन्थि पर पड़ता है । इसके विषय में बहुत बार पूछा जाता है कि ताप उत्पन्न करने वाला कौन सा प्राणायाम होता है ? जिसका उत्तर है उज्जायी प्राणायाम ।
उज्जायी प्राणायाम के लाभ
उज्जायीकुम्भकं कृत्वा सर्वकार्याणि साधयेत् ।
न भवेत् कफरोगश्च क्रूरवायुरजीर्णकम् ।। 70 ।।
आमवात: क्षय: कासो ज्वरप्लीहा न विद्यते ।
जरामृत्युविनाशाय चोज्जायीं साधयेन्नर: ।। 71 ।।
भावार्थ :- उज्जायी प्राणायाम करने के बाद साधक को सभी कार्य सिद्ध करने चाहिए । इसके अभ्यास से उसे कफरोग, अपान वायु के दूषित होने से
होने वाले रोग, अजीर्ण अर्थात् अपच, आमवात, क्षय ( टीबी आदि ), खाँसी, ज्वर व प्लीहा ( शरीर से धातुओं का स्त्राव ) आदि रोगों का नाश होता है । साथ ही उज्जायी बुढ़ापे व मृत्यु का भी नाश करता है । अतः साधक को उज्जायी प्राणायाम की साधना करनी चाहिए ।
विशेष :- परीक्षा में इन सभी लाभों के विषय में भी पूछा जा सकता है ।
शीतली प्राणायाम विधि
जिह्वया वायुमाकृष्य उदरे पूरयेच्छनै: ।
क्षणं च कुम्भकं कृत्वा नासाभ्यां रेचयेत् पुनः ।। 72 ।।
भावार्थ :- जीभ से वायु को धीरे- धीरे खींचते हुए पूरे पेट को वायु से भरे लें । इसके बाद कुछ पल के लिए उस वायु को अन्दर रोकने के बाद नासिका के दोनों छिद्रों से उसको बाहर निकाल दें ।
विशेष :- यहाँ पर जीभ से वायु को अन्दर भरने का तात्पर्य है कि वायु हमारी जीभ के साथ स्पर्श करती हुई शरीर के भीतर प्रवेश करे । इसमें पूछा जा सकता है कि शीतली प्राणायाम करते हुए किस अंग द्वारा वायु को अन्दर भरा अथवा खींचा जाता है ? जिसका उत्तर है जीभ द्वारा । शीतली प्राणायाम में वायु का रेचन अथवा निष्कासन किस नासिका से किया जाता है ? उत्तर है दोनों नासिकाओं द्वारा ।
शीतली प्राणायाम शीतलता को बढ़ाने वाला होता है । जिन व्यक्तियों का बी०पी० कम ( निम्न रक्तचाप ) रहता हो उनको व सर्दी में इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए ।
शीतली प्राणायाम के लाभ
सर्वदा साधयेद्योगी शीतलीकुम्भकं शुभम् ।
अजीर्णं कफपित्तञ्च नैव तस्य प्रजायते ।। 73 ।।
भावार्थ :- जो योगी सदा अथवा प्रतिदिन शीतली प्राणायाम की साधना करता है, उसके लिए यह प्राणायाम मंगलकारी अथवा कल्याणकारी होता है । इससे साधक को अजीर्ण अर्थात् अपच, कफ व पित्त से सम्बंधित रोग कभी नहीं होते हैं ।
Vry vry thanks sir
Nice guru ji.
धन्यवाद।
ॐ गुरुदेव!
आपका हृदय से आभार।