मूर्छा प्राणायाम विधि व लाभ
सुखेन कुम्भकं कृत्वा मनश्च भ्रुवोरन्तरम् ।
सन्त्यज्य विषयान् सर्वान् मनोमूर्च्छा सुखप्रदा ।
आत्मनि मनसो योगादानन्दो जायते ध्रुवम् ।। 83 ।।
भावार्थ :- सभी विषयों को छोड़कर सुखपूर्वक श्वास को रोकते हुए अपने मन को दोनों भौहों के बीच में सुखपूर्वक लगाना ही मनोमूर्च्छा प्राणायाम होता है ।
जब आत्मा और मन का आपस में योग अर्थात् मिलन हो जाता है तो वह निश्चित रूप से आनन्द की स्थिति कहलाती है ।
विशेष :- मूर्च्छा प्राणायाम से किसकी प्राप्ति होती है ? उत्तर है परम आनन्द की । मूर्च्छा प्राणायाम में मन को कहाँ पर स्थित ( लगाते ) करते हैं ? उत्तर दोनों भौहों के बीच में ।
केवली प्राणायाम वर्णन
हङ्कारेण बहिर्याति सकारेण विशेत् पुनः ।
षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्त्राण्येक विंशति: ।
अजपां नाम गायत्रीं जीवो जपति सर्वदा ।। 84 ।।
भावार्थ :- ‘हं’ शब्द की ध्वनि के साथ प्राणवायु शरीर के अन्दर प्रवेश करती है और ‘स’ शब्द की ध्वनि के साथ प्राणवायु शरीर से बाहर निकलती है । इस प्रकार मनुष्य एक दिन ( दिन व रात ) में इक्कीस हजार छ: सौ ( 21600 ) बार इस अजपा नामक गायत्री का जप करता है ।
विशेष :- प्राणवायु किस शब्द की ध्वनि के साथ शरीर के अन्दर प्रवेश करता है ? उत्तर ‘हं’ शब्द की ध्वनि के साथ । किस ध्वनि के साथ प्राणवायु शरीर से बाहर निकलती है ? उत्तर है ‘स’ की ध्वनि के साथ । पूरे एक दिन अर्थात् दिन व रात में मनुष्य कितनी बार अजपा जप गायत्री का जप करता है ? उत्तर है इक्कीस हजार छ: सौ ( 21600 )
मूलाधारे यथा हंसस्तथा हि हृदि पंकजे ।
तथा नासापुटद्वन्द्वे त्रिविधं संगमागम् ।। 85 ।।
भावार्थ :- ऊपर वर्णित ‘हंस’ ( हं व स ) का आवागमन मूलाधार चक्र में, हृदय प्रदेश में व दोनों नासिका छिद्रों अर्थात् इन तीनों के संगम से होकर आता- जाता है ।
विशेष :- हंस की ध्वनि का आवागमन कहा- कहा से होता है ? उत्तर मूलाधार, हृदय प्रदेश व दोनों नासिका छिद्रों से ।
Dr sahab nice explain about hansa sound.
Thanks again sir
My dear Dr. Sahab thanks for regular supply of study material. I think little mistake in explanation of shlok no.84
हम ध्वनि के साथ श्वास प्राणवायु शरीर के अंदर प्रवेश करती है और स ध्वनि के साथ प्रश्वास वायु शरीर से बाहर निकलती है। यह उल्टा हो गया लगता है। यानी स में प्राणवायु प्रवेश करती है और हम में बाहर निकलती है, ऐसा होना चाहिए।तो कृपया ठीक करवाने का कष्ट करें। धन्यवाद।
Correct
ॐ गुरुदेव!
अपजा हृदय से आभार।