केवली कुम्भक विधि
नासाभ्यां वायुमाकृष्य केवलं कुम्भकं चरेत् ।
एकादिकचतु:षष्टिं धारयेत् प्रथमे दिने ।। 92 ।।
केवलीमष्टधां कुर्याद् यामे यामे दिने दिने ।
अथवा पञ्चधा कुर्याद् यथा तत् कथयामि ते ।। 93 ।।
प्रातर्मध्याह्नसायाह्ने मध्ये रात्रिचतुर्थके ।
त्रिसन्ध्यमथवा कुर्यात् सममाने दिने दिने ।। 94 ।।
पञ्चवारं दिने वृद्धिर्वारैकं च दिने तथा ।
अजपा परिमाणं च यावत् सिद्धि: प्रजायते ।। 95 ।।
भावार्थ :- अपने दोनों नासिका छिद्रों से वायु को अन्दर भरकर उसे अन्दर ही रोके रखना केवली कुम्भक होता है । पहले दिन के अभ्यास में साधक को चौसठ ( 64 ) बार ही इसका अभ्यास करना चाहिए ।
इसके बाद साधक इस अभ्यास को बढ़ाते हुए प्रतिदिन केवल कुम्भक का अभ्यास हर तीन- तीन घण्टे में एक बार और पूरे दिन में कुल आठ बार इसका अभ्यास करे । अन्यथा जो आठ बार अभ्यास न कर सके उसे प्रतिदिन पाँच बार इसका अभ्यास करना चाहिए । दिन में किस- किस समय इसका अभ्यास करना चाहिए ? अब इसके विषय में बताता हूँ :- साधक इसका अभ्यास प्रातःकाल, दोपहर, सायंकाल, आधी रात को व रात्रि के चौथे पहर अर्थात् सुबह तीन से चार बजे के दौरान । यदि पाँच बार भी इसका अभ्यास न कर सकें तो वह प्रतिदिन तीन बार ( प्रातः, दोपहर व सायंकाल ) में एक समान संख्या में इसका अभ्यास करे ।
इस प्रकार प्रत्येक पाँचवें दिन में इसके अभ्यास में एक बार की वृद्धि तब तक करनी चाहिए जब तक कि इस अजपा जप की संख्या में वृद्धि होकर इसमें सिद्धि नहीं मिल जाती ।
विशेष :- केवली कुम्भक का प्रथम दिन कितने चक्र अभ्यास करना चाहिए ? उत्तर चौसठ बार ( 64 ) । प्रतिदिन कितने घण्टे के अन्तराल में केवली कुम्भक का अभ्यास करना चाहिए ? उत्तर है प्रत्येक तीन घण्टे के अन्तराल में । एक दिन में अधिकतम कितनी बार इसका अभ्यास करना चाहिए ? उत्तर है आठ बार ( 8 ) । किन पाँच समय पर इसका अभ्यास करने का निर्देश दिया गया है ? उत्तर प्रातःकाल, दोपहर, सायंकाल, आधी रात व रात्रि के चौथे पहर में । कितने दिन बाद इसके अभ्यास को बढ़ाना चाहिए ? उत्तर प्रत्येक पाँचवें दिन ।
केवली कुम्भक का लाभ
प्राणायामं केवलीं च तदा वदति योगवित् ।
केवली कुम्भके सिद्धे किन्न सिद्धयति भूतले ।। 96 ।।
भावार्थ :- केवली प्राणायाम के सिद्ध होने पर योगी योग को भली- भाँति जानने लगता है । केवली कुम्भक प्राणायाम की सिद्धि होने पर इस पृथ्वी पर ऐसी कोई सिद्धि नहीं है जो साधक को प्राप्त न हो सके या इस पृथ्वी पर ऐसा कोई सिद्धि नहीं है जो उसके लिए अप्राप्य हो ।
।। इति पञ्चमोपदेश: समाप्त: ।।
इसी के साथ घेरण्ड संहिता का पाँचवा अध्याय ( कुम्भक / प्राणायाम वर्णन ) समाप्त हुआ ।
Nice explain about kavali pranayam dr sahab.
Ati uttam gyan sir….?
Om…sir..
Ati uttam gyan…dhanyawad sir..
ॐ गुरुदेव!
आपका हृदय से आभार।