सूर्यभेदी प्राणायाम वर्णन
कथितं सहितं कुम्भं सूर्यभेदनकं श्रृणु ।
पूरयेत् सूर्यनाड्या च यथाशक्ति बहिर्मरुत् ।। 57 ।।
धारयेद् बहुयत्नेन कुम्भकेन जलन्धरै: ।
यावत् स्वेदं नखकेशाभ्यां तावत्कुर्वतु कुम्भकम् ।। 58 ।।
भावार्थ :- सहित कुम्भक का वर्णन किया जा चुका है । अब सूर्यभेदी प्राणायाम को सुनो – अपनी दायीं नासिका से बाहर की वायु को जितना सम्भव हो सके उतना भर लें ।
अब उस अन्दर भरी हुई वायु को जालन्धर बन्ध लगाकर तब तक अन्दर ही रोके रखें जब तक कि नाखूनों से लेकर सिर के बालों तक पसीना नहीं आ जाता ।
विशेष :- सूर्यभेदी प्राणायाम करते हुए कितनी देर तक श्वास को अन्दर रोकना चाहिए ? उत्तर है जब तक कि नाखूनों से लेकर सिर के बालों तक पसीना नहीं आ जाता तब तक ।
सूर्यभेदी प्राणायाम शरीर में ऊष्मा अर्थात् गर्मी को बढ़ाता है । इसलिए जिनको उच्च रक्तचाप ( बी०पी० हाई ) व नकसीर ( नाक से खून बहना ) आदि समस्या रहती हों उनको इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए । साथ ही गर्मी के मौसम में भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए ।
पाँच प्राण व पाँच उपप्राण वर्णन
प्राणोऽपान: समानश्चोदानव्यानौ तथैव च ।
नाग: कूर्मश्च कृकलो देवदत्तो धनञ्जय: ।। 59 ।।
भावार्थ :- प्राण, अपान, समान, उदान व व्यान ये पाँच प्राण होते हैं । नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त व धनञ्जय ये पाँच उपप्राण होते हैं ।
विशेष :- प्राण कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर है पाँच । उपप्रानों की संख्या कितनी होती है ? उत्तर है पाँच ।
प्राणों को उनकी शरीर में स्थिति के अनुसार आरोही क्रम ( बढ़ते क्रम अथवा नीचे से ऊपर की ओर ) में व्यवस्थित करें – जिसका उत्तर है व्यान, अपान, समान, प्राण व उदान । प्राणों को शरीर में उनकी स्थिति के अनुसार अवरोही क्रम ( ऊपर से नीचे ) में रखें – जिसका उत्तर है उदान, प्राण, समान, अपान व व्यान ।
प्राणों का सामान्य क्रम क्या होता है ? उत्तर है प्राण, अपान, समान, उदान व व्यान ।
प्राणों का उपप्राणों से सम्बंध :-
प्राण का उपप्राण क्या होता है ? उत्तर नाग । अपान प्राण का उपप्राण क्या होता है ? उत्तर कूर्म । समान प्राण का उपप्राण क्या है ? उत्तर कृकल । उदान प्राण का उपप्राण कौन सा है ? उत्तर देवदत्त । व्यान प्राण का उपप्राण क्या है ? उत्तर धनञ्जय ।
कौन सा प्राण शरीर में कहाँ पर स्थित है ?
हृदि प्राणो वहेन्नित्यमपानो गुदामण्डले ।
समानो नाभिदेशे तु उदान: कण्ठमध्यग: ।। 60 ।।
व्यानो व्याप्त शरीरे तु प्रधाना: पञ्च वायव: ।
प्राणाद्या: पञ्च विख्याता नागाद्या: पञ्च वायव: ।। 61 ।।
भावार्थ :- प्राण हृदय प्रदेश में, अपान गुदा प्रदेश में, समान नाभि प्रदेश में, उदान कण्ठ प्रदेश में व व्यान सम्पूर्ण शरीर में गमन अथवा स्थित होता है ।
इनमें से पाँच प्राण, अपान, समान, उदान व व्यान मुख्य होते हैं और नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त व धनञ्जय उपप्राण गौण होते हैं ।
विशेष :- प्राण शरीर के किस भाग में होता है ? उत्तर है हृदय प्रदेश में । अपान प्राण का स्थान कहाँ पर है ? उत्तर है गुदा प्रदेश । समान प्राण का स्थान कहाँ पर होता है ? उत्तर नाभि प्रदेश में । उदान प्राण कहा स्थित है ? उत्तर है कण्ठ अथवा गले में । व्यान प्राण की स्थिति बताइये ? उत्तर है सम्पूर्ण शरीर में ।
दस प्राणों में किन्हें मुख्य प्राण माना जाता है ? उत्तर है पञ्च प्राणों ( प्राण, अपान, समान, उदान व व्यान ) को । उपप्राणों को अन्य किस नाम से जाना जाता है ? उत्तर है गौण प्राण के नाम से ।
पाँच उपप्राणों का शरीर में क्या- क्या कार्य होते हैं ?
तेषामपि च पञ्चानां स्थानानि च वदाम्यहम् ।
उद्गारे नाग आख्यात: कूर्मस्तून्मीलने स्मृत: ।। 62 ।।
कृकल: क्षुत्कृते ज्ञेयो देवदत्तो विजृम्भणे ।
न जहाति मृते क्वापि सर्वव्यापी धनञ्जय: ।। 63 ।।
भावार्थ :- अब जो पाँच प्रकार के उपप्राण हैं उनके शरीर में स्थिति का वर्णन करता हूँ । डकार में नाग वायु, आँखों के खुलने व बन्द होने में कूर्म वायु, छीकनें में कृकल वायु, जम्भाई लेने में देवदत्त वायु व जो मरने के भी कुछ समय तक शरीर में ही स्थित रहती है वह धनञ्जय नामक वायु होती है ।
विशेष :- डकार किस प्राण के कारण आती है ? उत्तर नाग । आँखों को खोलने व बन्द करने में किस प्राण का योगदान होता है ? उत्तर कूर्म । कृकल वायु का क्या कार्य होता है ? उत्तर छीकने का । देवदत्त प्राण का क्या कार्य होता है ? जम्भाई लेना । वो कौन सी वायु अथवा प्राण है जो मरने के बाद भी कुछ समय तक शरीर में ही रहता है ? उत्तर धनञ्जय ।
उपप्राणों के शरीर में कार्य
नागो गृह्णाति चैतन्यं कूर्मश्चैव निमेषणम् ।
क्षुत्तुषं कृकलश्चैव जृम्भणं चतुर्थेन तु ।
भवेद्धनञ्जयाच्छब्दं क्षणमात्रं न नि:सरेत् ।। 64 ।।
भावार्थ :- नाग नामक वायु अथवा प्राण चेतना को ग्रहण करती है, कूर्म वायु से खोलने व बन्द करने का कार्य सम्पन्न होता है । भूख- प्यास का अनुभव कृकल वायु से, जम्भाई लेने का कार्य देवदत्त से होता है व धनञ्जय वायु कभी भी शरीर को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ता ।
विशेष :- चेतना का अनुभव किस वायु या प्राण द्वारा होता है ? उत्तर है नाग द्वारा । पलकों को खोलने व बन्द करने का कार्य किसके द्वारा सम्पादित किया जाता है ? उत्तर है कूर्म द्वारा । भूख व प्यास को कौन सा प्राण प्रेरित करता है ? उत्तर है कृकल । जम्भाई में कौन सी वायु कार्य करती है ? उत्तर है देवदत्त वायु । कौन सी वायु शरीर को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ती ? उत्तर है धनञ्जय वायु ।
सूर्यभेदी प्राणायाम की पूर्णता
सर्वे ते सूर्यसम्भिन्ना नाभिमूलात् समुद्धरेत् ।
इडया रेचयेत् पश्चाद् धैर्येणाखण्डवेगत: ।। 65 ।।
भावार्थ :- उन सभी ( प्राण व उपप्राणों ) को सूर्यभेदी प्राणायाम द्वारा नाभि से ऊपर उठाकर उनको धैर्य के साथ बायीं नासिका से वेगपूर्वक बाहर निकाल देना चाहिए ।
दोबारा अभ्यास
पुनः सूर्येण चाकृष्य कुम्भयित्वा यथाविधि ।
रेचयित्वा साधयेत्तु क्रमेण च पुनः पुनः ।। 66 ।।
भावार्थ :- इसके बाद फिर से दायीं नासिका से वायु को अन्दर भरकर उसे उसी विधि के अनुसार अन्दर ही रोकते हुए बाहर निकाल दें । इस प्रकार साधक को इस सूर्यभेदी प्राणायाम का बार- बार अभ्यास करना चाहिए ।
सूर्यभेदी प्राणायाम के लाभ
कुम्भक: सूर्यभेदस्तु जरामृत्युविनाशक: ।
बोधयेत् कुण्डलीशक्तिं देहानलं विवर्धयेत् ।
इति ते कथितं चण्ड सूर्यभेदनमुत्तमम् ।। 67 ।।
भावार्थ :- सूर्यभेदी प्राणायाम के अभ्यास से साधक बुढ़ापे व मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है । कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है व जठराग्नि प्रदीप्त होती है ।
हे चन्डकापालिक! इस प्रकार सूर्यभेदी नामक उत्तम प्राणायाम का वर्णन मैंने तुम्हारे सामने किया ।
विशेष :- सभी लाभ परीक्षा के लिए उपयोगी है ।
Very nice explanation , Thank you sir
Nice guru ji.
ॐ गुरुदेव?
आपका हृदय से आभार।
Nice explanation sir
Very nice Guru ji
????प्रणाम गुरुजी, VERY VERY GOOD article.
बहुत ही beneficial रहेगा मेरे लिए… आभार ????????????
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बहुत सुंदर सर बड़ी अच्छी तरह से आपने समझाया है।