सिद्धासन वर्णन
योनिस्थानकमङ्घ्रिमूलघटितं संपीड्य गुल्फेतरम् मेढ्रे सम्प्रणिधाय तं तु चिबुकं कृत्वा हृदि स्थापितम् ।
स्थाणु: संयमितेन्द्रियोऽचलदृशा पश्यन् भ्रुवोरन्तरमेवंमोक्षविधायतेफलकरं सिद्धासनं प्रोच्यते ।। 7 ।।
भावार्थ :- एक पैर की एड़ी ( विशेषतः बायें पैर की ) से योनिस्थान ( अंडकोशों के नीचे ) को दबायें । दूसरे पैर की एड़ी को लिङ्गमूल ( स्वाधिष्ठान चक्र के नीचे का वह स्थान जहाँ से लिंग शुरू होता है ) पर रखें । इसके बाद अपनी ठुड्डी को हृदय प्रदेश के ऊपर स्थापित ( टिकाएं ) करके पूर्ण रूप से स्थिर होकर अर्थात् बिना किसी प्रकार की हलचल किये दृष्टि को दोनों भौहों के मध्य ( आज्ञा चक्र ) में लगाकर बैठना सिद्धासन कहलाता है । इस प्रकार सिद्धासन का अभ्यास करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
पद्मासन की विधि
वामोरूपरि दक्षिणं च चरणं संस्थाप्य वामं तथा
दक्षोरूपरि पश्चिमेन विधिना धृत्वा कराभ्यां दृढम् ।
अङ्गुष्ठौ हृदये निधाय चिबुकं नासाग्रमालोकयेद्
एतद्व्याधिविनाशकारणपरं पद्मासनं प्रोच्यते ।। 8 ।।
भावार्थ :- बायीं जंघा पर दायें पैर को व दायीं जंघा पर बायें पैर को रखें । अब दोनों हाथों को कमर के पीछे से ले जाते हुए दायें हाथ से दायें व बायें हाथ से बायें पैर के अँगूठों को मजबूती से पकड़ें । इसके बाद अपनी ठुड्डी को छाती पर लगाकर नासिका के अग्र भाग ( अगले हिस्से ) को देखना पद्मासन कहलाता है । पद्मासन का अभ्यास करने से साधक के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं ।
विशेष :- सामान्यतः ऊपर वर्णित पद्मासन की विधि को हम बद्ध पद्मासन के नाम से जानते हैं । लेकिन यहाँ पर महर्षि घेरण्ड ने इसे पद्मासन कहकर संबोधित किया है ।
भद्रासन विधि व लाभ
गुल्फौ च वृषणस्याधो व्युत्क्रमेण समाहित: ।
पादाङ्गुष्ठौ कराभ्याञ्च धृत्वा च पृष्ठदेशत: ।। 9 ।।
जालन्धरं समासाद्य नासाग्रमवलोकयेत् ।
भद्रासनं भवेदेतत्सर्वव्याधिविनाशकम् ।। 10 ।।
भावार्थ :- अपने दोनों पैरों की एड़ियों को उल्टा करके ( पँजें पीछे व एड़ियां आगे की ओर ) अंडकोशों के नीचे रखें । इसके बाद दोनों हाथों को पीछे की ओर ले जाकर पैरों के दोनों अँगूठों को मजबूती से पकड़ें फिर जालन्धर बन्ध लगाकर ( ठुड्डी को छाती में लगाना ) नासिका के अग्रभाग ( अगले हिस्से ) को देखना भद्रासन कहलाता है । भद्रासन का अभ्यास करने से साधक के सभी प्रकार के रोग समाप्त हो जाते हैं ।
धन्यवाद।
Sukriya sir