वीरासन वर्णन
एकपादमथैकस्मिन्विन्यसेदूरूसंस्थितम् ।
इतरस्मिंस्तथा पश्चाद्वीरासनमितीरितम् ।। 17 ।।
भावार्थ :- एक पैर के पँजे को उल्टा करके दूसरे पैर की जँघा पर रखें ( जिस पैर के पँजे को जँघा पर रखा है उसके घुटने को जमीन पर टिकाकर रखना चाहिए ) । फिर उस दूसरे पैर को पीछे की ओर रखें ( जिस पैर पर पँजा रखा है ) । यह विधि वीरासन कहलाती है ।
धनुरासन वर्णन
प्रसार्य पादौ भुवि दण्डरूपौ करौ च पृष्ठे धृतपादयुग्मम् ।
कृत्वा धनुस्तुल्यपरिवर्त्तिताङ्गं निधाय योगी धनुरासनं तत् ।। 18 ।।
भावार्थ :- जमीन पर पेट के बल लेटकर दोनों पैरों को पीछे की ओर डण्डे की तरह फैला कर रखें । अब दोनों हाथों से अपने पैरों को पकड़कर ( बायें हाथ से बायां पैर व दायें हाथ से दायां पैर ) शरीर को धनुष की तरह खींचते हुए अंगों को बदलना चाहिए । अंगों को बदलने का अर्थ है अपने दोनों हाथों को कन्धों के ऊपर से घुमाना । इससे दोनों हाथों की कोहनियाँ आगे की ओर हो जाती हैं । यह विधि धनुरासन कहलाती है ।
मृतासन / शवासन वर्णन
उत्तान शववद् भूमौ शयानन्तु शवासनम् ।
शवासनं श्रमहरं चित्तविश्रान्तिकारणम् ।। 19 ।।
भावार्थ :- पेट व छाती को ऊपर की ओर करके भूमि पर सीधा लेटना शवासन कहलाता है । शवासन का अभ्यास करने से साधक के शरीर की थकान दूर होती है और चित्त को आराम मिलता है ।
विशेष :- मृतासन का दूसरा नाम शवासन है । परीक्षा में यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि मृतासन का अन्य नाम क्या है ? इसके अलावा यह भी पूछा जा सकता है कि कौन सा आसन व्यक्ति की थकान मिटाने है और चित्त को विश्राम दिलाता है ? जिसका उत्तर है शवासन अथवा मृतासन ।
गुप्तासन वर्णन
जानूर्वोरन्तरे पादौ कृत्वा पादौ च गोपयेत् ।
पादोपरि च संस्थाप्य गुदं गुप्तासनं विदुः ।। 20 ।।
भावार्थ :- सुखासन में बैठकर दोनों पैरों के पँजों को जाँघों के नीचे छिपाते हुए उनको पीछे की ओर रखें और उनके ऊपर गुदा प्रदेश को टिकाकर रखना गुप्तासन कहलाता है ।
मत्स्यासन वर्णन
मुक्तपद्मासनं कृत्वा उत्तानशयनञ्चरेत् ।
कूर्पराभ्यां शिरो वेष्टय मत्स्यासनन्तु रोगहा ।। 21 ।।
भावार्थ :- मुक्त पद्मासन करते हुए अर्थात् दोनों हाथों से पैरों के पँजों को बिना पकड़े केवल पद्मासन लगाकर सिर को अपनी दोनों कोहनियों के बीच में रखते हुए सीधा लेटना ( कमर के बल लेटना ) मत्स्यासन कहलाता है । मत्स्यासन साधक के सभी रोगों को दूर कर देता है ।
पश्चिमोत्तान आसन वर्णन
प्रसार्य पादौ भुवि दण्डरूपौ संन्यस्तभालं चितियुग्ममध्ये ।
यत्नेन पादौ च धृतौ कराभ्यां योगिन्द्रपीठं पश्चिमोत्तानमाहु: ।। 22 ।।
भावार्थ :- अपने दोनों पैरों को भूमि पर सामने की ओर फैलाते हुए दण्डासन की स्थिति में बैठकर अपने माथे को दोनों घुटनों के बीच में रखते हुए दोनों पैरों के पँजों को मजबूती के साथ पकड़ें । योगियों ने इसे प्रमुख आसन माना है । जिसे पश्चिमोत्तान आसन कहते हैं ।
विशेष :- इस आसन में पीठ का अग्रगामी फैलाव होने से इसे पश्चिमोत्तान आसन कहा जाता है । इस प्रकार का प्रश्न भी कई बार परीक्षा में पूछ लिया जाता है ।
धन्यवाद।
सवासन मे ध्यान भी लगाना चाहिए या नहीं ।
ध्यान कहाॅ और किसपर करनी चाहिए ।