मत्स्येंद्रासन वर्णन

 

उदरं पश्चिमाभासं कृत्वा तिष्ठति यत्नतः ।

नम्राङ्गं  वामपादं हि दक्षजानूपरि न्यसेत् ।। 23 ।।

तत्र याम्यं कूपरञ्च याम्यं करे च वक्त्रकम् ।

भ्रुवोर्मध्ये गतां दृष्टिं पीठं मात्स्येन्द्रमुच्यते ।। 24 ।।

 

भावार्थ :-  अपने पेट को पीछे पीठ ( कमर ) की ओर ले जाने का प्रयास करें और बायें पैर को आगे से घुमाते हुए दायें पैर के घुटने के पास में रखें । इसके बाद मुहँ को भी घुमाते हुए बायें हाथ ( कन्धे ) के ऊपर रखें और दृष्टि को दोनों भौहों के बीच में ( आज्ञा चक्र ) में स्थित करदें । ऐसा करना मत्स्येन्द्रासन कहलाता है ।

 

 

विशेष :- मत्स्येन्द्रासन का नाम ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ के नाम पर रखा गया है । कई बार परीक्षा में पूछ लिया जाता है कि मत्स्येन्द्रासन का सम्बन्ध किससे है या मत्स्येन्द्रासन को मत्स्येन्द्रासन ही क्यों कहा जाता है ? जिसका उत्तर है ऋषि मत्स्येंद्रनाथ ।

 

 

गोरक्षासन वर्णन

 

जानूर्वोन्तरे पादौ उत्तानौव्यक्तसंस्थितौ ।

गुल्फौ चाच्छाद्य हस्ता भ्यामुत्तानाभ्यां प्रयत्नतः ।। 25 ।।

कण्ठ संकोचनं कृत्वा नासाग्रमवलोकयेत् ।

गोरक्षासनमित्याह योगिनां सिद्धिकारणम् ।। 26 ।।

 

भावार्थ :-  अपने पैरों के दोनों तलवों को घुटने व जँघाओं के बीच में छिपाकर रखें और दोनों हाथों की हथेलियों से दोनों पैरों की एड़ियों के ऊपर स्थापित करदें । अब अपने कण्ठ प्रदेश को सिकोड़ते हुए नासिका के अग्रभाग ( नाक के अगले हिस्से को ) देखना चाहिए । यह योगियों को सिद्धि प्राप्त करवाने वाला गोरक्षासन कहलाता है ।

 

 

उत्कटासन वर्णन

 

अङ्गुष्ठाभ्यामवष्टभ्य धरां गुल्फौ च खे गतौ ।

तत्रोपरि गुदं न्यस्य विज्ञेयमुत्कटासनम् ।। 27 ।।

 

भावार्थ :-  दोनों पैरों के अँगूठों के ऊपर पूरे शरीर का भार रखते हुए दोनों एड़ियों को ऊपर उठाकर उनके ऊपर गुदा प्रदेश ( दोनों नितम्बों ) को रखें । ऐसा करना उत्कटासन कहलाता है ।

 

 

विशेष :- श्लोक में गुदा प्रदेश को दोनों एड़ियों पर रखने की बात कही गई है जो कि सम्भव प्रतीत नहीं होती । यहाँ पर ऋषि घेरण्ड का मत दोनों नितम्बों से रहा होगा । ऐसा मेरा मानना है । क्योंकि दोनों एड़ियों पर एक साथ गुदा प्रदेश को रखना तर्कपूर्ण नहीं है ।

 

 संकटासन वर्णन

 

वामपादं चित्तेर्मूलं संन्यस्य धरणीतले ।

पाद दण्डेन याम्येन वेष्टयेद्वामपादकम् ।

जानुयुग्मे कर युग्ममेतत्संकटासनम् ।। 28 ।।

 

भावार्थ :- बायें पैर के घुटने के अग्रभाग ( अगले हिस्से को ) को जमीन पर टिकाते हुए दायें पैर को बायें पैर पर लपेटकर दोनों हाथों की हथेलियों को दोनों पैरों के घुटनों पर रखें । इस विधि को संकटासन कहते हैं ।

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