मयूरासन वर्णन

 

धरामवष्टभ्य करयोस्तलाभ्यां तत्कूर्परे स्थापितनाभिपार्श्वम् ।

उच्चासनो दण्डवदुत्थित: खे मायूरमेतत्प्रवदन्ति पीठम् ।। 29 ।।

 

भावार्थ :-  दोनों हाथों की हथेलियों को जमीन पर मजबूती के साथ रखते हुए दोनों कोहनियों को नाभि प्रदेश के दोनों तरफ ( दायीं व बायीं ओर ) रखकर पूरे शरीर को दोनों कोहनियों पर डण्डे के समान सीधा उठाकर रखना मयूरासन कहलाता है ।

 

 

विशेष :- मयूरासन का नामकरण मोर नामक पक्षी पर रखा गया है । जिस प्रकार मोर अपने पूरे शरीर को अपनी कोहनियों पर उठाए रखता है । उसी प्रकार शरीर की स्थिति करने को मयूरासन कहते हैं । मयूरासन से जठराग्नि इतनी तीव्र हो जाती है कि विषाक्त भोजन खाने पर भी वह उसे शीघ्र पचा देता है । इसलिए मयूरासन करने वाले साधक को कभी भी पाचन तंत्र से जुड़ी कोई समस्या नहीं होती । इस आसन को महिलाओं के लिए वर्जित माना जाता है । इसका कारण यह है कि जहाँ पर दोनों कोहनियों को रखा जाता है । वहाँ पर महिलाओं का गर्भाशय स्थित होता है । इसके करने से कई बार महिलाओं को गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है । इसलिए इसे महिलाओं के लिए प्रायः वर्जित माना जाता है ।

ऊपर वर्णित सभी बातें परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी हैं ।

 

 

कुक्कुटासन वर्णन

 

पद्मासनं समासाद्य जानूर्वोन्तरे करौ ।

कर्पूराभ्यां समासीन उच्चस्थ: कुक्कुटासनम् ।। 30 ।।

 

भावार्थ :-  पद्मासन लगाकर अपने दोनों हाथों को पिंडलियों व जाँघों के बीच में से निकालते हुए भूमि पर दोनों हथेलियों को अच्छे से स्थापित करदें । इससे शरीर जमीन से ऊपर उठ जाएगा । इस स्थिति में साधक को ऐसा प्रतीत है कि वह किसी मंच अथवा लकड़ी के स्टूल पर बैठा है । इसे कुक्कुटासन कहते हैं ।

 

 

कूर्मासन वर्णन

 

गुल्फौ च वृषणस्याधो व्युत्क्रमेण समाहितौ ।

ऋजुकायशिरोग्रीवं कूर्मासनमितीरितम् ।। 31 ।।

 

भावार्थ :-  सुखासन में बैठकर अपने दोनों पैरों को उल्टा करके एड़ियों के ऊपर अंडकोशों को रखें । फिर अपने सिर, गर्दन व शरीर को सीधा रखना ( एक सीध में ) कूर्मासन कहलाता है ।

 

 

विशेष :- कूर्मासन के विषय में पूछा जा सकता है कि कूर्मासन में कूर्म का क्या अर्थ है ? जिसका उत्तर है कछुआ । कछुए को संस्कृत भाषा में कूर्म बोला जाता है । इस आसन में शरीर की स्थिति कछुए के समान हो जाती है । जिसके कारण इसे कूर्मासन कहा जाता है ।

 

 

उत्तानकूर्मासन वर्णन

 

कुक्कुटासनबन्धस्थं कराभ्यां धृतकन्धरम् ।

पीठं कूर्मवदुत्तानमेतदुत्तानकूर्मकम् ।। 32 ।।

 

भावार्थ :-  पहले कुक्कुटासन की स्थिति में बैठें ( कुक्कुटासन की स्थिति के लिए श्लोक संख्या 30 को देखें ) । अब दोनों हाथों से अपने कन्धों अथवा गर्दन को पकड़कर कछुए के समान सीधे लेट जाना उत्तान कूर्मासन कहलाता है ।

 

 

उत्तानमण्डूक आसन

 

मण्डूकासनमध्यस्थं कूर्पराभ्यां धृतं शिर: ।

एतत् भेकवदुत्तानमेतदुत्तान मण्डुकम् ।। 33 ।।

 

भावार्थ :-  सर्वप्रथम मण्डूकासन की स्थिति में बैठकर ( मण्डूकासन की स्थिति को जानने के लिए श्लोक संख्या 35 देखें ) दोनों हाथों की हथेलियों से अपने सिर को पकड़ते हुए मेंढक की तरह सीधा लेट जाना उत्तान मण्डूकासन कहलाता है ।

 

 

वृक्षासन वर्णन

 

वामोरुमूलदेशे च याम्यं पादं निधान तु ।

तिष्ठेत्तु वृक्षवद् भूमौ वृक्षासनमिदं विदुः ।। 34 ।।

 

भावार्थ :-  बायें पैर की जँघा पर दायें पैर ( तलवे को ) को स्थापित ( रखकर ) करके भूमि पर पेड़ की भाँति सीधे खड़े रहना वृक्षासन कहलाता है ।

 

विशेष :- वृक्षासन का सम्बंध पेड़ से होता है । जिस प्रकार पेड़ एक ही तने के ऊपर सीधा खड़ा रहता है । ठीक उसी प्रकार शरीर को एक पैर पर स्थिर कर देना वृक्षासन कहलाता है ।

 

 

मण्डूकासन वर्णन

 

पृष्ठदेशे पादतलौ अङ्गुष्ठे द्वे च संस्पृशेत् ।

जानुयुग्मं पुरस्कृत्य साधयेन् मण्डुकासनम् ।। 35 ।।

 

भावार्थ :-  दोनों घुटनों को जमीन पर रखते हुए दोनों पैरों के तलवों को पीछे की ओर करें और अँगूठों को जमीन पर टिकाकर रखें । शरीर की इस स्थिति को मण्डूकासन कहते हैं ।

 

विशेष :- मण्डूकासन में मण्डूक शब्द का अर्थ मेंढक होता है । जिसको कई बार परीक्षा में भी पूछ लिया जाता है ।

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  1. ॐ गुरुदेव!
    आपका हृदय की गहराइयों से परम अभिनंदन।

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