मुक्तासन वर्णन
पायुमूले वामगुल्फं दक्षगुल्फं तथोपरि ।
समकायशिरोग्रीवं मुक्तासनन्तु सिद्धि दम् ।। 11 ।।
भावार्थ :- पैर की बायीं ऐड़ी को गुदाद्वार में लगाकर उसके ऊपर दायें पैर की एड़ी को रखें । सिर व गर्दन को बिना हिलायें बिलकुल सीधी करके बैठना मुक्तासन कहलाता है । यह मुक्तासन साधक को अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करता है ।
वज्रासन वर्णन
जंघाभ्यां वज्रवत्कृत्वा गुदपार्श्वे पदावुभौ ।
वज्रासनं भवेदेतद्योगिनां सिद्धिदायकम् ।। 12 ।।
भावार्थ :- दोनों जँघाओं को वज्र के समान मजबूत व स्थिर करके दोनों पैरों के पँजों को गुदा प्रदेश के दोनों ओर समान रूप से रखते हुए बैठना वज्रासन कहलाता है । यह वज्रासन योगियों को सिद्धि प्रदान करने वाला होता है ।
स्वस्तिकासन वर्णन
जानूर्वोरन्तरे कृत्वा योगी पादतले उभे ।
ऋजुकाय: समासीन: स्वस्तिकं तत्प्रचक्षते ।। 13 ।।
भावार्थ :- दोनों पैरों के तलवों को पिंडलियों व जाँघों के बीच में रखकर ( बायें पैर के तलवे को दायें पैर की पिंडली व जँघा के बीच व दायें पैर के तलवे को बायें पैर की पिंडली व जँघा के बीच में रखें ) तनाव रहित अर्थात् सुखपूर्वक बैठना स्वस्तिकासन कहलाता है ।
सिंहासन वर्णन
गुल्फौ च वृषणस्याधो व्युत्क्रमेणोर्ध्वतां गतौ ।
चितिमूलौ भूमिसंस्थौ कृत्वा च जानु नोपरि ।। 14 ।।
व्यक्तवक्त्रो जलंध्रञ्च नासाग्रमवलोकयेत् ।
सिंहासनं भवेदेतत् सर्वव्याधिविनाशकम् ।। 15 ।।
भावार्थ :- दोनों पैरों के पँजों को अंडकोशों के नीचे जमीन में रखते हुए ( पँजे नीचे व ऐड़ी ऊपर की ओर ) दोनों घुटनों को जमीन में टिकाएं । इसके बाद के ठीक ऊपर मुहँ को पूरा खोलकर जालन्धर बन्ध लगाते हुए नासिका के अग्रभाग को देखना सिंहासन कहलाता है । सिंहासन का अभ्यास करने से साधक के सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं ।
गोमुखासन वर्णन
पादौ च भूमौ संस्थाप्य पृष्ठपार्श्वे निवेशयेत् ।
स्थिरकायं समासाद्य गोमुखं गोमुखाकृति: ।। 16 ।।
भावार्थ :- साधक सर्वप्रथम अपने दोनों पैरों ( पँजों ) को भूमि पर रखकर अपनी पीठ ( नितम्बों ) के दोनों ओर स्थापित करें ( इसमें दोनों घुटने एक – दूसरे को क्रॉस करते हुए एक – दूसरे के ऊपर नीचे रहेंगे ) और शरीर को बिना हिलायें- डुलायें उसी स्थिति में रखें । इस प्रकार शरीर की आकृति गाय के मुख के समान बन जाती है । इसी को गोमुखासन कहा गया है ।
विशेष :- गोमुखासन को परीक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण आसन माना जाता है । इससे सम्बंधित निम्न प्रश्न पूछे जाते हैं :- गोमुखासन में शरीर की आकृति गाय के किस अंग के समान होती है ? जिसका उत्तर है गाय के मुहँ अर्थात् मुख के समान । इसके अतिरिक्त गोमुखासन स्वयं में ही पूरक आसन होता है । इसको एक बार बायें पैर को ऊपर करके और फिर दायें पैर को ऊपर रखकर करने से ही इसको पूरक आसन माना जाता है । अतः इसका कोई विपरीत या पूरक आसन नहीं होता है ।
Thnx sir
ॐ गुरुदेव !
अति सुंदर व्याख्या।
आपको हृदय से आभार।
धन्यवाद।
Sunder
Apko hriday se naman