द्वितीय अध्याय ( आसन वर्णन )
घेरण्ड संहिता के दूसरे अध्याय में सप्तांग योग के दूसरे अंग अर्थात् आसन का वर्णन किया गया है । घेरण्ड ऋषि ने आसनों के बत्तीस ( 32 ) प्रकारों को माना है । घेरण्ड संहिता के अनुसार आसन करने से साधक के शरीर में दृढ़ता ( मजबूती ) आती है । अब आसनों के क्रम को प्रारम्भ करते हैं ।
आसनानि समस्तानि यावन्तो जीवजन्तव: ।
चतुरशीतिलक्षाणि शिवेन कथितानि च ।। 1 ।।
तेषां मध्ये विशिष्टानि षोडशोनं शतं कृतम् ।
तेषां मध्ये मर्त्यलोके द्वात्रिंशदासनं शुभम् ।। 2 ।।
भावार्थ :- इस पृथ्वी पर जितने भी जीवजन्तु अर्थात् प्राणी हैं आसनों की संख्या भी उतनी ही मानी गई है । प्राचीन काल में भगवान शिव ने उनमें से चौरासी लाख ( 8400000 ) आसनों को माना है । उसके बाद अर्थात् मध्यकाल में चौरासी सौ ( 8400 ) आसनों को प्रमुख माना गया था । जिनमें से मृत्युलोक अर्थात् वर्तमान समय में मात्र बत्तीस ( 32 ) आसनों को ही मनुष्य के लिए शुभ अर्थात् कल्याणकारी माना गया है ।
विशेष :- आसनों की संख्या के विषय में सभी योग आचार्यों के अलग – अलग मत हैं । जिनमें महर्षि घेरण्ड ने घेरण्ड संहिता में बत्तीस ( 32 ) आसनों का, स्वामी स्वात्माराम ने हठ प्रदीपिका में पन्द्रह ( 15 ) आसनों का, योगी श्रीनिवासन ने हठ रत्नावली में छत्तीस ( 36 ) आसनों का, योगी गुरु गोरक्षनाथ ने सिद्ध सिद्धान्त पद्धति में मात्र तीन ( 3 ) आसनों का, शिव संहिता में मात्र चार ( 4 ) आसनों का, योगदर्शन के व्यास भाष्य में महर्षि व्यास ने तेरह ( 13 ) आसनों का वर्णन किया है । ऊपर वर्णित आसनों की संख्या को सभी विद्यार्थी अच्छे से याद कर लें । इनसे सम्बंधित कोई भी प्रश्न परीक्षा में पूछा जा सकता है । इसके अतिरिक्त ऊपर वर्णित श्लोकों से सम्बंधित भी कुछ प्रश्न बनते हैं । जिनका वर्णन करना आवश्यक है । जैसे- आसनों की संख्या किनके बराबर मानी गई है ? जिसका उत्तर है सभी जीवजन्तुओं के बराबर । प्राचीन काल में भगवान शिव ने आसनों के कितने प्रकार ( संख्या ) माने हैं ? जिसका उत्तर है चौरासी लाख । मध्यकाल में आसनों के कितने प्रकारों को मान्यता मिली है ? जिसका उत्तर है चौरासी सौ । मृत्युलोक अर्थात् वर्तमान समय में, महर्षि घेरण्ड या घेरण्ड संहिता में आसनों की कितनी संख्या मानी गई है ? जिसका उत्तर है बत्तीस ।
बत्तीस आसनों के नाम
सिद्धं पद्मं तथा भद्रं मुक्तं वज्रञ्च स्वस्तिकम् ।
सिंहञ्च गोमुखं वीरं धनुरासनमेव च ।। 3 ।।
मृतं गुप्तं तथा मत्स्यं मत्स्येन्द्रासनमेव च ।
गोरक्षं पश्चिमोत्तानं उत्कटं संकटं तथा ।। 4 ।।
मयूरं कुक्कुटं कुर्मं तथाचोत्तानकूर्मकम् ।
उत्तान मण्डूकं वृक्षं मण्डूकं गरुडं वृषम् ।। 5 ।।
शलभं मकरं चोष्ट्रं भुजङ्गञ्चयोगासनम् । द्वात्रिंशदासनानि तु मर्त्यलोके हि सिद्धिदम् ।। 6 ।।
भावार्थ :- इस मृत्युलोक अर्थात् वर्तमान समय में निम्न बत्तीस आसन ही मनुष्य को सिद्धि प्राप्त करवाने वाले हैं । जिनका वर्णन इस प्रकार है :- 1. सिद्धासन, 2. पद्मासन, 3. भद्रासन, 4. मुक्तासन, 5. वज्रासन, 6. स्वस्तिकासन, 7. सिंहासन, 8. गोमुखासन, 9. वीरासन, 10. धनुरासन, 11. मृतासन / शवासन, 12. गुप्तासन, 13. मत्स्यासन, 14. मत्स्येन्द्रासन, 15. गोरक्षासन, 16. पश्चिमोत्तानासन, 17. उत्कट आसन, 18. संकट आसन, 19. मयूरासन, 20. कुक्कुटासन, 21. कूर्मासन, 22. उत्तानकूर्मासन, 23. मण्डूकासन, 24. उत्तान मण्डूकासन, 25. वृक्षासन, 26. गरुड़ासन, 27. वृषासन, 28. शलभासन, 29. मकरासन, 30. उष्ट्रासन,
- भुजंगासन व 32. योगासन ।
Thank you sir
धन्यवाद।
Thanks sir
ॐ गुरुदेव!
अति उत्तम व्याख्या।
आपको हृदय से आभार।
Thank you sir
नमस्कार sir, यहा श्लोक 2 मे shod shonam satkam अर्थात 100में 16 कम 84 ; से तात्पर्य हे तथा यहाँ सब्दार्थ m 8400 लिखा हुआ है