सत्रहवां अध्याय ( श्रद्धात्रय विभागयोग )

इस पूरे अध्याय में श्रद्धा, आहार, यज्ञ, तप व दान के तीन – तीन प्रकारों का वर्णन किया गया है । इसलिए इस अध्याय का नाम श्रद्धात्रय रखा गया है । जिसमें श्रद्धा के साथ- साथ अन्य अंगों के भी तीन- तीन प्रकार बताये गए हैं ।

इसमें कुल अठाईस ( 28 ) श्लोक कहे गए हैं । सर्वप्रथम श्रद्धा के तीन प्रकारों ( सात्त्विकी श्रद्धा, राजसिक श्रद्धा व तामसिक श्रद्धा ) को बताया गया है । जब अर्जुन पूछता है कि हे कृष्ण ! सात्त्विक, राजसिक व तामसिक श्रद्धा वाले भक्त किन- किन की उपासना करते हैं ? इसके उत्तर में श्रीकृष्ण कहते हैं कि सात्त्विक श्रद्धा वाले देवताओं की, राजसिक श्रद्धा वाले यक्षों व राक्षसों की व तामसिक श्रद्धा वाले सदा भूत- प्रेतादि की उपासना करते हैं । इसके बाद आहार की चर्चा करते हुए कहा है कि व्यक्ति को अपनी प्रकृति के अनुसार ही आहार पसन्द होता है । सात्त्विक श्रद्धा वाले व्यक्ति सात्त्विक आहार ( बल, आरोग्यता, सुख व प्रीति बढ़ाने वाले पदार्थ ) को पसन्द करते हैं । राजसिक वृत्ति वालों को राजसिक आहार ( कड़वे, खट्टे, चटपटे व ज्यादा गर्म खाद्य पदार्थ ) पसन्द होते हैं और तामसिक वृत्ति वाले व्यक्ति तामसिक आहार ( दुर्गन्धित, बासी, नीरस व झूठा भोजन ) पसन्द करते हैं । इसके बाद तीन प्रकार के यज्ञ सात्त्विक, राजसिक व तामसिक बताए गए हैं । जो व्यक्ति को अपनी प्रकृति के अनुसार ही अच्छा लगता है । फल की आशा से रहित व्यक्ति सात्त्विक यज्ञ करता है । राजसिक वृत्ति वाला व्यक्ति फल की आशा व दिखावे के लिए राजसिक यज्ञ करता है और तामसिक व्यक्ति मूर्खतापूर्ण शास्त्रविधि के विरुद्ध या शास्त्रों से रहित यज्ञ करता है । इसी प्रकार तीन प्रकार का तप कहा गया है । सात्त्विक व्यक्ति शास्त्रों के अनुकूल उत्तम तप करता है । वहीं राजसिक व

प्रवृत्ति वाला व्यक्ति मान- सम्मान व दिखावे के लिए राजसिक तप करता है और तामसिक व्यक्ति स्वयं को कष्ट देते हुए शास्त्रों के विरुद्ध विधि से तामसिक तप करता है । इसी कड़ी में दान के तीन प्रकार बताए गए हैं । जो शास्त्रों के अनुकूल पात्र व्यक्ति को दान देता है वह सात्त्विक दान, जो दिखावे के लिए व मान- सम्मान के लिए दान देता है वह राजसिक दान और मूर्खतापूर्ण व गलत व्यक्ति को दिया गया दान तामसिक दान कहलाता है ।

इस प्रकार पूरे अध्याय में तीन प्रकार की प्रकृत्ति के अनुसार ही उसकी श्रद्धा, आहार, यज्ञ, तप, दान का वर्णन किया गया है ।

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  1. ॐ गुरुदेव!
    अठारह अध्यायों की संक्षिप्त
    व्याख्या से मात्र एक कदम दूर,
    बहुत ही उत्तम संक्षिप्त व्याख्या
    हृदय अत्यंत आह्लादित है।

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