ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्चये ।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ।। 12 ।।
व्याख्या :- ये सात्त्विक, राजसिक व तामसिक भाव अथवा गुण हैं, इनकी उत्पत्ति का आधार भी मैं ही हूँ, लेकिन ये सब मुझसे उत्पन्न होते हैं, पर मैं उनसे रहित हूँ अर्थात् यह सभी मेरे अधिकार में अवश्य हैं, परन्तु मैं इनके अधिकार में नहीं हूँ ।
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ।। 13 ।।
व्याख्या :- यह सम्पूर्ण जगत् अथवा संसार इन तीनों गुणों ( सात्त्विक, राजसिक व तामसिक ) के प्रभाव से मोहित ( आकर्षित ) होने के कारण, इनसे परे ( अलग ) मेरे अविनाशी स्वरूप को नहीं जान पाता ।
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ।। 14 ।।
व्याख्या :- जो मनुष्य मेरी इस दुस्तर ( जिसको भेदना अत्यन्त कठिन हो ) त्रिगुणात्मक दैवी शक्ति को ही सबकुछ मान लेते हैं, वह इसको भेदने में असमर्थ होते हैं, लेकिन जो इससे परे अर्थात् मुझको ही भजते हैं अथवा जो मेरा भजन करते हैं, वह इस संसार से तर जाते हैं अर्थात् उनका उद्धार हो जाता है ।
न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः ।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ।। 15 ।।
व्याख्या :- जिनका ज्ञान माया द्वारा भ्रमित अथवा अपहृत हो गया है, जिनकी आसुरी अर्थात् हिंसक प्रवृति है, जो दुष्कर्म करने वाले दुराचारी हैं, मूढ़ ( अज्ञानता से जिनकी बुद्धि नष्ट हो गई है ) और जो नरों ( मनुष्यों ) में सबसे निकृष्ट अर्थात् निम्न स्तर वाले लोग हैं, वह मुझे प्राप्त नहीं करते हैं अर्थात् वह कभी भी मेरी शरण में नहीं आते हैं ।
विशेष :- यह श्लोक परीक्षा व व्यवहार दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । इसमें बताया गया है कि कौन से वह अवगुण हैं, जिनके रहते मनुष्य कभी भी परमात्मा की शरण में नहीं जा सकता ? हमें इन सभी अवगुणों को दूर करने का निरन्तर प्रयास करना चाहिए ।
परीक्षा में भी पूछा जा सकता है कि किस प्रकार के मनुष्य परमात्मा की शरण में नहीं जा सकते अथवा किनको ब्रह्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती ? जिसका उत्तर है – माया ने जिनका ज्ञान अपहृत कर लिया है, जिनका स्वभाव आसुरी है, जो दुराचारी हैं, जो मूढ़ स्वभाव वाले हैं, व जो प्राणियों में सबसे निकृष्ट हैं, वह कभी भी ब्रह्मा की शरण में नहीं जा पाते हैं ।
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Guru ji nice explain about parbu sarnagati.
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