जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।
ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम्‌ ।। 29 ।।

 

 

व्याख्या :-  जो भक्त मेरा आश्रय लेकर बुढ़ापे और मृत्यु से छूटकर मोक्ष पाने का प्रयत्न करते हैं, वह ब्रह्मा को, सम्पूर्ण अध्यात्म को और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कर्मों के रहस्यों को जान लेते हैं ।

 

 

साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ।। 30 ।।

 

 

व्याख्या :-  जो विद्वान मुझे अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ सहित जान लेते हैं, वह चेतना से युक्त विद्वान अपने अन्तिम समय अर्थात् मृत्यु के समय मुझको ही प्राप्त होते हैं ।

 

 

विशेष :-  ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव, अधियज्ञ व अन्तकाल आदि विषयों की विस्तृत चर्चा अगले अध्याय में की जाएगी ।

 

 

सप्तम अध्याय ( ज्ञानविज्ञानयोग ) पूर्ण हुआ ।

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  1. ओम् गुरुदेव!
    सातवें अध्याय की समाप्ति पर आपको हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद देता हूं।

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