सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत ।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः ।। 3 ।।
व्याख्या :- हे भारत ! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके सत्त्व स्वरूप अर्थात् उनके वास्तविक स्वरूप के अनुसार ही होती है । प्रत्येक मनुष्य श्रद्धा से युक्त होता है, जिसकी जैसी श्रद्धा होती है, वह ठीक वैसा ही होता है अर्थात् जैसी मनुष्य की श्रद्धा, वैसा ही उसका स्वरूप ।
सात्त्विकी श्रद्धा = देवताओं का यजन
राजसी श्रद्धा = यक्ष व राक्षसों का यजन
तामसी श्रद्धा = भूत- प्रेतों का यजन
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः ।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः ।। 4 ।।
व्याख्या :- जो व्यक्ति सत्त्व गुण प्रधान अथवा सात्त्विक स्वभाव वाले होते हैं, वे देवताओं की पूजा -अर्चना करते हैं, जो व्यक्ति रज गुण प्रधान अथवा राजसिक स्वभाव वाले होते हैं, वे यक्षों व राक्षसों को पूजते हैं और जिन व्यक्तियों में तमोगुण की प्रधानता होती है, वे भूत – प्रेतों की पूजा करते हैं ।
विशेष :-
- सात्त्विक पुरुष किनका यजन करते हैं ? उत्तर है – देवताओं का ।
- राजसिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति किनकी पूजा करते हैं ? उत्तर है – यक्ष व राक्षसों की ।
- भूत – प्रेतों की उपासना कौन करता है ? उत्तर है – तामसिक व्यक्ति ।
आसुरी स्वभाव के लक्षण
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः ।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः ।। 5 ।।
कर्शयन्तः शरीरस्थं भूतग्राममचेतसः ।
मां चैवान्तःशरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान् ।। 6 ।।
व्याख्या :- जो मनुष्य शास्त्र विधि के विरुद्ध अथवा विपरीत दम्भ, अहंकार, कामना, राग और बल के अभिमान से युक्त होकर, कठोर तप अथवा तपस्या करते हैं, वे व्यक्ति –
अपनी शास्त्र विरोधी कठोर तपस्या द्वारा पञ्च तत्वों से निर्मित इस शरीर को, इसमें स्थित आत्मा को और मुझे दुर्बल अथवा कमजोर करने का प्रयास करते हैं, इस प्रकार कठोर तप करने वालों को तुम आसुरी स्वभाव वाला समझो ।
विशेष :-
- शास्त्र विधि के विपरीत कठोर तप करने वालों को किस प्रवृत्ति का कहा जाता है ? उत्तर है – आसुरी प्रवृत्ति अथवा स्वभाव वाला ।
- कठोर तपस्या द्वारा वह असुर व्यक्ति किसे दुर्बल अथवा कमजोर करने का प्रयास करते हैं ? उत्तर है – शरीर, आत्मा और ईश्वर को ।