ॐ तत् सत् = ब्रह्म स्वरूप

 

ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः ।

ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा ।। 23 ।।

तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपः क्रियाः ।

प्रवर्तन्ते विधानोक्तः सततं ब्रह्मवादिनाम्‌ ।। 24 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  ‘ॐ तत् सत्’ नामक तीन शब्दों द्वारा ब्रह्म को निर्देशित किया गया है अर्थात् ब्रह्म को इन तीन नामों से जाना जाता है, ब्राह्मण, वेद और यज्ञों की रचना इसी ब्रह्म से हुई है ।

 

इसलिए ब्रह्म को जानने वाले सभी ब्रह्मवेत्ता  यज्ञ, दान, तप आदि क्रियाओं का प्रारम्भ सदैव ॐ शब्द के उच्चारण से करते हैं ।

 

 

 

विशेष :-

  • ब्राह्मण, वेद और यज्ञों की उत्पत्ति किसके द्वारा होती है ? उत्तर है – ब्रह्म द्वारा ।
  • गीता के अनुसार ब्रह्म को किस नाम से सम्बोधित किया गया है ? उत्तर है – ॐ तत् सत् से ।
  • ‘ॐ तत् सत्’ शब्द का क्या अर्थ होता है ? उत्तर है – ब्रह्म ही सत्य है ( ईश्वर ही सत्य है )
  • सभी ब्रह्मवेत्ता यज्ञ, दान व तप आदि क्रियाओं का आरम्भ किस शब्द के साथ करते हैं ? उत्तर है – ॐ शब्द के साथ ।

 

 

तदित्यनभिसन्दाय फलं यज्ञतपःक्रियाः ।

दानक्रियाश्चविविधाः क्रियन्ते मोक्षकाङ्क्षिभिः ।। 25 ।।

 

 

व्याख्या :-  मोक्ष अथवा मुक्ति पाने वाले साधक ‘ब्रह्म ही सत्य है, यह जो कुछ भी है सब उसी का है’ – इस भाव को मानते हुए, बिना फल की इच्छा के यज्ञ, तप व दान आदि क्रियाओं को सम्पन्न करते हैं ।

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