सात्त्विक दान = योग्य व्यक्ति, समय व स्थान पर कर्तव्य भावना से
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ।। 20 ।।
व्याख्या :- जो दान उपयुक्त देश ( स्थान ), काल ( समय ) और पात्र ( योग्य व्यक्ति ) को बिना उपकार की भावना के अर्थात् उसे कर्तव्य कर्म मानते हुए दिया जाता है, वह सात्त्विक दान कहलाता है ।
विशेष :-
- सात्त्विक दान के लिए किन – किन बिंदुओं पर विचार करना चाहिए ? उत्तर है – उपयुक्त स्थान, समय और पात्र व्यक्ति के सही चुनाव पर ।
राजसिक दान = क्लेश, प्रत्युपकार व फल प्राप्ति की इच्छा सहित
यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः ।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम् ।। 21 ।।
व्याख्या :- जो दान किसी के उपकार के बदले में ( किसी द्वारा किए गए अहसान का बदला चुकाने के लिए ) व फल प्राप्ति की इच्छा से क्लेशपूर्वक किया जाता है, उसे राजसिक दान कहते हैं ।
विशेष :-
- राजसिक दान किस भावना से किया जाता है ? उत्तर है – प्रत्युपकार, फलासक्ति व क्लेशपूर्ण भावना से ।
तामसिक दान = बिना मान- सम्मान के अयोग्य व्यक्ति को
अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते ।
असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ।। 22 ।।
व्याख्या :- जो दान अनुपयुक्त देश ( गलत स्थान ), अनुपयुक्त काल ( गलत समय ) व अयोग्य व्यक्ति को, बिना मान – सम्मान के अर्थात् तिरस्कारपूर्ण तरीके से दिया जाता है, वह तामसिक दान होता है ।
विशेष :-
- सबसे निकृष्ट दान किसे कहा जाता है ? उत्तर है – तामसिक दान को ।
गीता में किस दान को तामसिक कहा गया है ? उत्तर है – अनुपयुक्त स्थान, समय और व्यक्ति को, बिना सम्मान के दिया गया दान तामसिक कहा गया है ।