कायिक ( शरीर से सम्बंधित ) तप

 

देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्‌ ।

ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ।। 14 ।।

 

 

व्याख्या :-  देवताओं, ब्राह्मणों, गुरुजनों और विद्वानों की पूजा, शुद्धता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा से युक्त होकर किए जाने वाले तप शारीरिक तप कहलाते हैं ।

 

 

वाचिक ( वाणी से सम्बंधित ) तप

  

अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्‌ ।

स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्‍मयं तप उच्यते ।। 15 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  किसी दूसरे को उद्विग्न न करने वाले, सत्य, सबको प्रिय ( अच्छे ) लगने वाले, सबके हित अर्थात् भले के लिए किया जाने वाला सम्बोधन और स्वाध्याय वाचिक ( वाणी से सम्बंधित ) तप कहलाते हैं ।

 

 

विशेष :-

  • वाचिक तप कैसे किया जाता है ? उत्तर है – दूसरों को उद्विग्न न करने वाले, सत्य, प्रिय और हितकारी वचन बोलकर व स्वाध्याय का पालन करके ।

 

 

 

मानसिक ( मन से सम्बंधित ) तप

 

मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः ।

भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ।। 16 ।।

 

 

व्याख्या :-  मन की प्रसन्नता, सौम्यता, मौन ( आवश्यकतानुसार बोलना ), आत्मनिग्रह ( स्वयं को नियंत्रण में रखना ), भावों की शुद्धि – इन सबको मन सम्बन्धी तप कहते हैं ।

 

 

विशेष :-

  • भावों की शुद्धता किस तप के अन्तर्गत आती है ? उत्तर है – मानसिक तप के अन्तर्गत ।
  • दूसरों को कठोर वचन न बोलना कौन सा तप कहलाता है ? उत्तर है – वाचिक या वाणी से सम्बंधित तप ।

देवता, ब्राह्मण, गुरुजनों व विद्वानों की पूजा किस तप के अन्तर्गत की जाती है ? उत्तर है – शारीरिक तप के अन्तर्गत ।

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