सात्त्विक यज्ञ
अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते ।
यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः ।। 11 ।।
व्याख्या :- जो यज्ञ फल की इच्छा से रहित शास्त्र विधि के अनुसार है, कर्तव्य भावना और एकाग्र मन के साथ किया गया है, वह सात्त्विक यज्ञ कहलाता है ।
विशेष :-
- फल की आसक्ति से रहित होकर किए जाने वाले यज्ञ को कौनसा यज्ञ कहते हैं ? उत्तर है – सात्त्विक यज्ञ ।
- सात्त्विक यज्ञ में किस विधि का पालन किया जाता है ? उत्तर है – शास्त्र विधि का ।
राजसिक यज्ञ
अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत् ।
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम् ।। 12 ।।
व्याख्या :- लेकिन हे भरत श्रेष्ठ अर्जुन ! जो यज्ञ प्रदर्शन अथवा दिखावे के लिए और फल प्राप्ति की इच्छा से किया जाता है, तुम उसे राजसिक यज्ञ जानो ।
विशेष :-
- राजसिक यज्ञ किस उद्देश्य से किया जाता है ? उत्तर है – दिखावे और फल प्राप्ति की इच्छा से ।
तामसिक यज्ञ
विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम् ।
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते ।। 13 ।।
व्याख्या :- जो यज्ञ शास्त्र विधि को त्यागकर, बिना अन्न दान के, बिना मन्त्र के, बिना दक्षिणा के और श्रद्धाभाव से रहित होकर किया जाता है, वह तामसिक यज्ञ कहलाता है ।
विशेष :-
तामसिक मनुष्य यज्ञ को किस प्रकार करते हैं ? उत्तर है – शास्त्र विधि से रहित, अन्न रहित, मन्त्र रहित, दक्षिणा रहित और श्रद्धा रहित होकर ।