बीज स्थापना ( गर्भ स्थापना )

 

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।

तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ।। 4 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे कौन्तेय ! सभी योनियों में जितने भी मूर्त रूप ( शरीरधारी ) प्राणी जन्म लेते हैं, उनकी ब्रह्म रूप प्रकृति योनि है और मैं उस योनि में बीज की स्थापना करने वाला पिता हूँ ।

 

 

 

विशेष :-

  • प्रकृति रूपी योनि में गर्भ की स्थापना किसके द्वारा व किस रूप में की जाती है ? उत्तर है – ईश्वर द्वारा पिता के रूप में ।

 

 

आत्मा द्वारा शरीर धारण = त्रय गुणों के कारण

 

रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।

निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्‌ ।। 5 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे महाबाहो अर्जुन ! सत्त्व, रज व तम नामक तीन गुणों की उत्पत्ति प्रकृति से होती है । ये तीनों गुण ही उस अविनाशी आत्मा को इस शरीर में बाँधते हैं अर्थात् आत्मा हमारे शरीरों में इन तीन ( सत्त्व, रज व तम ) गुणों के कारण ही निवास करती है ।

 

 

विशेष :-

  • शरीर में आत्मा को किसके द्वारा बाँधा जाता है ? उत्तर है – सत्त्व, रज व तम के कारण ।

 

 

सत्त्व गुण का प्रभाव

 

तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्‌ ।

सुखसङ्‍गेन बध्नाति ज्ञानसङ्‍गेन चानघ ।। 6 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  हे निष्पाप अर्जुन ! इन तीनों गुणों में से जो सत्त्वगुण है, वह पवित्र होने के कारण प्रकाशित करने वाला और निर्विकार ( सभी विकारों अथवा दोषों से रहित ) है । उसका सुख और ज्ञान के साथ सम्बन्ध अथवा जुड़ाव होने से वह आत्मा को शरीर के साथ बाँधता है ।

 

 

विशेष :-

  • सत्त्वगुण की उत्पत्ति किसके कारण होती है अथवा सत्त्वगुण की क्या विशेषताएँ हैं ? उत्तर है – सत्त्वगुण पवित्र, प्रकाशवान व सभी विकारों से रहित ( निर्विकार ) है ।

सत्त्वगुण के किन दो गुणों के कारण आत्मा शरीर के साथ बन्धन में बँधता है ? उत्तर है – सुख व ज्ञान के साथ सम्बन्ध होने के कारण ।

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