गुणातीत होने के उपाय

 

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।

स गुणान्समतीत्येतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ।। 26 ।।

ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च ।

शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च ।। 27 ।।

 

 

 

व्याख्या :- जो पुरुष अपने सभी कर्मों को मुझमें समर्पित कर, भक्तियोग से परिपूर्ण होकर मेरी सेवा करता है अथवा मेरा भजन करता है, वह इन तीनों गुणों ( सत्त्व, रज व तम ) से मुक्त होकर ब्रह्मभाव को प्राप्त कर लेता है –

 

क्योंकि मैं ही उस अविनाशी ब्रह्मा के अमृत,  विकार रहित, शाश्वत ( नित्य ) धर्म और अखण्ड आनन्द का एकमात्र आश्रय हूँ ।

 

 

 

विशेष :-  इन दोनों ही श्लोकों में गुणों से रहित अर्थात् गुणातीत होने के उपाय बताए गए हैं ।

 

 

 

चौदहवां अध्याय ( गुणत्रयविभागयोग ) पूर्ण हुआ ।

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