कर्मों के फल

 

कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्‌ ।

रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्‌ ।। 16 ।।

 

 

व्याख्या :- सात्त्विक अथवा शुभ कर्मों का फल सात्त्विक और पवित्र, राजसिक कर्मों का फल दुःख और तामसिक कर्मों का फल अज्ञान होता है ।

 

 

 

विशेष :-

  • सात्त्विक व पवित्र फल किन कर्मों द्वारा प्राप्त होते हैं ? उत्तर है – सात्त्विक अथवा शुभ कर्मों द्वारा ।
  • दुःख किन कर्मों का परिणाम हैं ? उत्तर है – राजसिक कर्मों का ।
  • तामसिक कर्मों से किस फल की प्राप्ति होती है ? उत्तर है – अज्ञान की ।

 

 

सत्त्व से ज्ञान, रज से लोभ व तम से प्रमाद, मोह व अज्ञान उत्पत्ति

 

 

सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ।

प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ।। 17 ।।

 

 

व्याख्या :-  सत्त्वगुण से ज्ञान की उत्पत्ति होती है, रजोगुण से लोभ की उत्पत्ति होती है और तमोगुण से प्रमाद और मोह के साथ- साथ अज्ञान की भी उत्पत्ति होती है ।

 

 

गुणों से लोक अथवा योनि प्राप्ति

 

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।

जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ।। 18 ।।

 

 

व्याख्या :-  मृत्यु के बाद सत्त्वगुण प्रधान व्यक्ति स्वर्गादि उच्च लोकों में जाते हैं, रजोगुण प्रधान व्यक्ति इसी मृत्युलोक में जन्म लेते हैं और अति निन्दनीय कर्म करने वाले व तमोगुण प्रधान व्यक्ति अधोगति को प्राप्त होकर निकृष्ट योनियों में जन्म लेते हैं ।

 

 

 

विशेष :-

  • सत्त्वगुणी व्यक्तियों को कौन से लोक की प्राप्ति होती है ? उत्तर है – स्वर्गादि उच्च लोकों की ।
  • रजोगुण प्रधान व्यक्तियों को किसकी प्राप्ति होती है ? उत्तर है – मनुष्य अथवा मृत्युलोक की ।
  • अति निन्दनीय अथवा बुरे कर्म करने वाले व तामसिक गुण की प्रबलता वाले व्यक्तियों को कौन सी योनि प्राप्त होती है ? उत्तर है – वह अधोगति को प्राप्त होकर निकृष्ट योनियों में जन्म लेते हैं ।

 

 

नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति ।

गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति ।। 19 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  जब कोई पुरुष समभाव से युक्त होकर प्रकृति के गुणों को ही सभी क्रियाओं का संचालन कर्ता मान लेता है, तो वह इन गुणों से परे मेरे स्वरूप को यथार्थ रूप में पहचान कर मुझे प्राप्त कर लेता है ।

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