एक गुण की प्रधानता
रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत ।
रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा ।। 10 ।।
व्याख्या :- हे भारत ! रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुण प्रधान हो जाता है, सत्त्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण प्रधान हो जाता है तथा सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण प्रधान हो जाता है ।
विशेष :-
- सत्त्वगुण कब प्रधान होता है ? उत्तर है – रजोगुण व तमोगुण के दबने से अथवा रजोगुण व तमोगुण की मात्रा न्यून होने पर ।
- रजोगुण कब प्रधान होता है ? उत्तर है – सत्त्वगुण व तमोगुण के दबने पर ।
- तमोगुण की प्रधानता कब होती है ? उत्तर है – सत्त्वगुण व रजोगुण के दबने पर ।
सत्त्वगुण का शरीर पर प्रभाव
सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते ।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ।। 11 ।।
व्याख्या :- जब शरीर के सभी द्वारों ( अन्तःकरण और इन्द्रियों ) में ज्ञान के प्रकाश का उजियारा होता है, तब उस ऐसा मानना चाहिए कि शरीर में सत्त्वगुण की वृद्धि हुई है ।
विशेष :-
- शरीर में सत्त्वगुण बढ़ने के क्या लक्षण हैं ? उत्तर है – ज्ञान का प्रकाश का उजाला होता है ।
रजोगुण का शरीर पर प्रभाव
लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा ।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ।। 12 ।।
व्याख्या :- हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन ! जब शरीर में रजोगुण की वृद्धि होती है, तब व्यक्ति में लोभ, कर्मों को फल की इच्छा से करने की प्रवृति, असंतुष्टि और लालसा अथवा कामनाएँ बढ़ती है ।
विशेष :- शरीर में रजोगुण के बढ़ने पर कौन से लक्षण दिखाई देते हैं ? उत्तर है – लोभ, कर्मफल आसक्ति, असंतुष्टि व लालसा की प्रवृति बढ़ती है ।
Thank you sir
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Prnam Aacharya jiँँ Dhanyavad
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