क्षणप्रतियोगी परिणामापरान्तनिर्ग्राह्य: क्रम: ।। 33 ।।
शब्दार्थ :- क्षण ( पलों के ) प्रतियोगी ( समूह पर आधारित व ) परिणाम ( उसके परिणाम अथवा फल के ) अपरान्त ( समाप्त होने या बन्द होने पर ) निर्ग्राह्य: ( जिसको जाना जाता है ) क्रम: ( वही क्रम कहलाता है )
सूत्रार्थ :- पलों के समूह पर आधारित व उसके परिणाम के समाप्त होने पर हमें जिसका ज्ञान होता है । उसे क्रम कहते हैं ।
व्याख्या :- इस सूत्र में क्रम को परिभाषित किया गया है ।
समय के सबसे छोटे अंश को क्षण अर्थात पल कहा जाता है । यह एक सेकंड से भी छोटा होता है । जिसका बिलकुल सटीक अनुमान लगाना कठिन होता है । इसके विषय में केवल एक ही बात प्रमाणिक है । और वह है समय का सबसे छोटा पल अर्थात जिसके और टुकड़े न किए जा सकें । वह क्षण ( पल ) होता है ।
यह क्षण निरन्तर बदलते रहते हैं । बिना किसी रुकावट के । हर एक पल में सभी वस्तुओं के स्वरूप में परिवर्तन होता ही रहता है । लेकिन इस परिवर्तन को तुरन्त प्रभाव से नहीं जाना जा सकता । क्योंकि किसी भी बदलाव का ज्ञान एक ही क्षण में नहीं हो सकता । इसके देखने व समझने के लिए एक निश्चित समय की आवश्यकता होती है ।
जैसे जब एक नवजात शिशु जन्म लेता है तो वह एक ही पल में युवा नहीं हो जाता । वैसे उसमें हर पल परिवर्तन तो होता ही रहता है । लेकिन उसको समझने व दिखने के लिए एक निश्चित समय सीमा की आवश्यकता होती है । ठीक वैसे ही जैसे एक नए वस्त्र को पुराना होने में समय लगता है । कोई भी वस्त्र लेते ही पुराना नहीं होता । वह निरन्तर हर पल पुराना होता रहता है । लेकिन यह परिवर्तन हमें कुछ समय बाद ही दिखाई देता है ।
इसको एक और उदाहरण द्वारा भी समझा जा सकता है । जिस प्रकार एक पेड़ पर कोई भी फूल या फल लगने से पहले उस पर उस फल या फूल का अंकुर आता है । धीरे- धीरे वह अंकुर आकार लेने लगता है । कुछ समय के बाद वह फल सही से दिखने लगता है । और देखते ही देखते कुछ ही समय के बाद वह फूल या फल पूरी तरह से तैयार हो जाता है । और वह अपने पूर्ण रूप को धारण कर लेता है । लेकिन उसके लिए उसको एक निश्चित समय सीमा से गुजरना पड़ता है । उसमें परिवर्तन तो प्रतिपल होता ही रहता है । लेकिन उस परिवर्तन को सही से दिखने में कुछ समय लगता है ।
इस प्रकार हर एक क्षण ( पल ) के बाद होने वाले क्षण ( पल ) को ही क्रम कहते हैं । नई वस्तु का परिवर्तित होकर पुराना होना या नवजात शिशु का परिवर्तित होकर युवा हो जाना ही क्षण का परिणाम होता है । यह क्रम का परिणाम त्रिगुण से निर्मित तत्त्वों में ही होता है । चेतन पुरुष में इस प्रकार का कभी भी कोई परिवर्तन नहीं होता ।
Dhanyawad.