तत: क्लेशकर्मनिवृत्ति: ।। 30 ।।

 

शब्दार्थ :- तत: ( उस अर्थात उस धर्ममेघ नामक समाधि से ) क्लेश ( अविद्या आदि पंच क्लेशों व ) कर्म ( कर्म संस्कारों की ) निवृत्ति: ( समाप्ति हो जाती है )

 

 

सूत्रार्थ :- उस धर्ममेघ नामक समाधि के प्राप्त होने से योगी के सभी अविद्या आदि पंच क्लेश और शुभ, अशुभ व मिश्रित कर्म समाप्त हो जाते हैं ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में धर्ममेघ समाधि से मिलने वाले फल की चर्चा की गई है ।

 

हमारे जन्म के पीछे सबसे बड़ा कारण अविद्या रूपी क्लेश है । इस अविद्या के चलते ही मनुष्य जन्म – मरण के चक्रव्यूह में निरन्तर घूमता रहता है । यह अविद्या ही बाकी के सभी क्लेशों का आधार होती है । लेकिन जब साधक निरन्तर योग साधना करके समाधि की सर्वोच्च अवस्था अर्थात धर्ममेघ नामक समाधि को प्राप्त कर लेता है । तब उसके अविद्या आदि सभी क्लेश पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं । वह क्लेश लेशमात्र भी शेष नहीं बचते ।

 

इसके साथ ही मनुष्य के जितने भी सकाम कर्म होते हैं । वह भी पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं । योगसूत्र में चार प्रकार के कर्म की चर्चा की गई है । जो इस प्रकार हैं :- 1. शुक्ल कर्म ( शुभ कर्म ) 2. कृष्ण कर्म ( अशुभ कर्म ) 3. शुक्ल- कृष्ण कर्म ( शुभाशुभ अथवा मिश्रित कर्म ) व 4. अशुक्ल- अकृष्ण कर्म ( शुभ व अशुभ से रहित ) ।

इन सभी कर्मों में से पहले तीन प्रकार के कर्मों ( शुक्ल, कृष्ण व शुक्ल- कृष्ण ) को छोड़कर केवल अशुक्ल- अकृष्ण कर्म ( शुभ व अशुभ से रहित कर्म ) ही योगी के कर्म होते हैं । इस धर्ममेघ नामक समाधि के परिणाम स्वरूप योगी के ऊपर वर्णित तीनों कर्मों  ( शुक्ल, कृष्ण व शुक्ल- कृष्ण ) की निवृत्ति ( समाप्ति ) हो जाती है । और केवल अशुक्ल- अकृष्ण कर्म अर्थात पाप व पुण्य से रहित कर्म ही शेष बचते हैं ।

 

इस प्रकार जब योगी के अविद्या आदि क्लेश और सकाम कर्मों की निवृत्ति हो जाने पर वह इसी जीवन में विमुक्त ( सभी बन्धनों से मुक्त ) हो जाता है । इस प्रकार अविद्या आदि क्लेशों के समाप्त होने पर कोई भी योगी पुनः जन्म नहीं लेता । वह पूरी तरह से जीवन- मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है ।

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