तदा विवेकनिम्नं कैवल्यप्राग्भारं चित्तम् ।। 26 ।।

  

शब्दार्थ :- तदा ( तब अर्थात योगी को विवेक ज्ञान की प्राप्ति होने पर ) चित्तम् ( उसका चित्त ) विवेकनिम्नम् ( विवेक ज्ञान के मार्ग का अनुसरण करता हुआ ) कैवल्य ( कैवल्य अर्थात मोक्ष या समाधि प्राप्त करने के लिए ) प्राग्भारम् ( उसकी ओर अग्रसर हो जाता है )

 

सूत्रार्थ :- विवेक ज्ञान की प्राप्ति होने पर योगी का चित्त विवेक ज्ञान का अनुसरण करते हुए कैवल्य प्राप्त करने के लिए उसकी ओर अग्रसर हो जाता है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में विवेक ज्ञान से युक्त चित्त को कैवल्य प्राप्ति के लिए समर्थ बताया गया है ।

 

विवेक ज्ञान होने से पहले योगी अज्ञानता के वशीभूत होकर कैवल्य से विपरीत दिशा में भटकता रहता है । लेकिन जैसे ही उसे विवेक से जनित ज्ञान की प्राप्ति होती है । वैसे ही वह कैवल्य प्राप्ति के मार्ग की ओर निरन्तर अग्रसर होता जाता है ।

 

जब तक हमें अपने जीवन में सही व गलत का ज्ञान नहीं होता । तब तक हम गलत ज्ञान या अनजाने में न जाने कितने ही गलत कार्य करते रहते हैं । उस समय हम सही जानकारी न होने के कारण अपने जीवन के लक्ष्य से विपरीत दिशा में चलते रहते हैं । लेकिन जैसे ही हमें यथार्थ ( वास्तविक ) ज्ञान की प्राप्ति होती है । वैसे ही हम अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना प्रारम्भ कर देते हैं ।

 

ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार जल हमेशा ऊँचाई से नीचे की ओर बहता रहता है । वही उसकी वास्तविक गति होती है । ठीक वैसे ही विवेक ज्ञान प्राप्त होने पर योगी बिना रुके निरन्तर कैवल्य मार्ग की ओर अग्रसर ( बढ़ता ) रहता है ।

 

विवेक ज्ञान के प्राप्त होने पर ही चित्त में कैवल्य मार्ग पर आगे बढ़ने की समर्थता ( ताकत ) आती है । जिससे मनुष्य अपने जीवन के अन्तिम पुरुषार्थ अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर पाता है । मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ बताए गए हैं :- 1. धर्म, 2. अर्थ, 3. काम व 4. मोक्ष ।

 

जिसमें मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए आवश्यक धन की प्राप्ति करता हुआ अपनी सात्विक इच्छाओं की पूर्ति करते हुए जीवन के अन्तिम पुरुषार्थ अर्थात मोक्ष को प्राप्त करता है । यही मनुष्य जीवन का सार है ।

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  1. ॐ गुरुदेव*
    चित्त अत्यंत आह्लादित है।
    आपके द्वारा प्रदान किए गए
    योग रूपी ज्ञानामृत का पान करके।
    इसके लिए आपको हृदय से परम आभार प्रेषित करता हूं।

  2. ??प्रणाम आचार्य जी! बहुत सुन्दर! योग माग॔ के सही पथ पर बढते रहने का ये ज्ञान , आपके द्वारा हमे दिया गया अमूल्य उपहार है! धन्य!धन्य! ओम??

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