विशेषदर्शिनआत्मभावभावनाविनिवृत्ति: ।। 25 ।।

 

 

शब्दार्थ :- विशेष ( विशिष्ट या खास ) दर्शिन: ( ज्ञान द्वारा ) आत्म ( स्वयं के ) भाव ( विषय में ) भावना ( उठने वाली जिज्ञासा अर्थात उत्सुकता ) विनिवृत्ति: ( समाप्त हो जाती है )

 

 

सूत्रार्थ :- विशेष अर्थात विवेक से उत्पन्न ज्ञान से योगी के अन्दर खुद के विषय में उठने वाली सभी जिज्ञासाएँ समाप्त हो जाती हैं ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में बताया गया है कि विवेक ज्ञान से योगी की स्वयं के विषय में उठने वाली सभी जिज्ञासाएँ शान्त हो जाती हैं ।

 

जब तक योगी को विवेक जनित ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती । तब तक वह इसी बात को जानने का प्रयास करता रहता है कि मैं कौन हूँ ? मैं पहले क्या था ? और मैं आगे क्या बनूँगा ?

 

इस प्रकार की इच्छाओं या भावनाओं को ही आत्म भावना कहा जाता है । जिसमें व्यक्ति अपने ही विषय में विभिन्न प्रकार की भावनाओं के बारे में विचार करता रहता है । लेकिन जैसे ही योगी को विवेक द्वारा उत्पन्न ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है । वैसे ही उसे इस बात का ज्ञान हो जाता है कि वह कौन है ? वह पहले क्या था ? और उसकी आगे किस प्रकार की गति होने वाली है ?

 

विवेक ज्ञान के द्वारा ही योगी को अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होता है । उसी के द्वारा वह यह जान पाता है कि उसका इन्द्रियों, मन, चित्त आदि जड़ पदार्थों से अलग अस्तित्व है । जब उसे इस प्रकार का ज्ञान हो जाता है । तब उसकी स्वयं के विषय में जानने की सभी जिज्ञासाओं का अन्त हो जाता है ।

 

जिस प्रकार वर्षा ऋतु में अनेक प्रकार की वनस्पति अपने आप ही उग जाती है । उससे हमें इस बात का अनुमान हो जाता है कि यहाँ पर इस प्रकार की वनस्पति के बीज पहले से ही मौजूद थे । वर्षा के जल से उनमें अंकुर उत्पन्न हो गया । जिससे उस बीज ने एक पौधे का रूप ले लिया । ठीक इसी प्रकार जिस व्यक्ति में पूर्व जन्मों के मोक्ष या समाधि के बीज मौजूद होते हैं । उन्हीं व्यक्तियों में इस जन्म में विवेक ज्ञान उत्पन्न होता है । और उस विवेक ज्ञान से ही मोक्ष अथवा समाधि की प्राप्ति होती है ।

Related Posts

October 15, 2018

पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसव: कैवल्यं स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशक्तिरिति ।। 34 ।।    शब्दार्थ :- पुरुषार्थ ...

Read More

October 14, 2018

क्षणप्रतियोगी परिणामापरान्तनिर्ग्राह्य: क्रम: ।। 33 ।।   शब्दार्थ :- क्षण ( पलों के ) प्रतियोगी ...

Read More

October 13, 2018

तत: कृतार्थानां परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानाम् ।। 32 ।।     शब्दार्थ :- तत: ( उसके अर्थात ...

Read More

October 12, 2018

तदा सर्वावरणमलापेतस्य ज्ञानस्यानन्त्याज्ज्ञेयमल्पम् ।। 31 ।।   शब्दार्थ :- तदा ( तब अर्थात क्लेशों ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. ॐ गुरुदेव*
    आपका बहुत_ बहुत आभार ।
    आपके पुरुषार्थ को सादर नमन।

  2. ??प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर सूत्र! उत्तम ज्ञान ! सूत्र मे दिया गया अंकुरण का उदाहरण इस सूत्र को सव॔ ग्राह्य बना रहा है! ओम??

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}