चित्तान्तरदृश्ये बुद्धिबुद्धेरतिप्रसङ्ग: स्मृतिसंकरश्च ।। 21 ।।

 

शब्दार्थ :- चित्तान्तर ( एक चित्त को दूसरे चित्त का ) दृश्य ( देखने वाला मानने से ) बुद्धिबुद्धे: ( उस दूसरी अर्थात अन्य बुद्धि के ज्ञान के कारण ) अति प्रसङ्ग: ( अनवस्था अर्थात अकर्मिक नामक दोष उत्पन्न होगा ) ( और ) स्मृति ( स्मृतियों अर्थात याददाश्त के परस्पर ) संकर: ( मिलने का भी दोष उत्पन्न होगा )

 

 

सूत्रार्थ :- एक चित्त को दूसरे चित्त का देखने वाला मानने से उस दूसरी बुद्धि के कारण उसमें अकर्मिक नामक दोष उत्पन्न होता है । तथा सभी स्मृतियों ( याददाश्त ) के आपस में मिलने का भी दोष उत्पन्न होता है ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में चित्त के अनवस्था ( अकर्मिक ) व मिश्रण दोष के विषय में बताया गया है ।

 

एक चित्त को दूसरे चित्त का दृश्य अर्थात ज्ञान करवाने वाला मान लिया जाए तो उससे दो प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाएंगे । एक तो उनके क्रम में दोष उत्पन्न होगा और दूसरा उनकी स्मृतियों का आपस में मिश्रण हो जाएगा ।

 

यदि हम यह मान भी लें कि हमारा चित्त हर पल में बदलता रहता है । तो किसी भी पदार्थ को पहले एक चित्त देखेगा, फिर दूसरा, फिर तीसर और इसी तरह एक के बाद एक बदलते हुए चित्त उस पदार्थ को देखते रहेंगे । इस तरह तो यह क्रम बिना रुके निरन्तर चलता रहेगा । इससे तो अन्तिम चित्त कोई होगा ही नहीं और हमें पदार्थ के स्वरूप का ज्ञान होगा ही नहीं ।

 

इस प्रकार अनेक प्रकार का ज्ञान होने से अनवस्था अर्थात अकर्मिक दोष उत्पन्न होगा । यह इसका अनवस्था नामक प्रथम दोष है । इसके बाद स्मृति मिश्रण नामक दूसरे दोष की उत्पत्ति होगी । अनेक चित्तों के द्वारा देखे जाने पर यह सुनिश्चित करना काफी कठिन होता है कि किस ज्ञान का कौन सा स्वरूप सही है और कौन सा गलत ? अनेक चित्तों के होने से अनेक स्मृतियाँ उभरेंगी । फिर यह कहना मुश्किल होगा कि यह वाला ज्ञान मैंने प्राप्त किया है ।

 

इसीलिए चित्त को केवल दृश्य और आत्मा को उसका दृष्टा मानना ही उचित होगा । चित्त मात्र दृश्य ही होता है । दृष्टा की भूमिका का निर्वहन सदा आत्मा द्वारा ही किया जाता है ।

 

अतः अनवस्था व स्मृति मिश्रण दोष को दूर करने के लिए चित्त व आत्मा के सही स्वरूप को जानना अति आवश्यक है ।

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  1. Pranaam Sir! ??Rightly said ignorance is bliss, if we are able to remember every past life we won’t be able to live our life happily.

  2. ॐ गुरुदेव*
    बहुत सुन्दर व्याख्या ।
    आपको हृदय से आभार।

  3. अतिउत्तम गुरूजी आप हर सूत्र को बड़ी सरलता से समझा देते हो ।आपका बहुत बहुत धन्यावाद

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