न तत्स्वाभासं दृश्यत्वात् ।। 19 ।।
शब्दार्थ :- तत् ( वह चित्त ) दृश्यत्वात् ( स्वयं दृश्य अर्थात प्रकृति से निर्मित होने से ) स्वाभासम् ( स्वयं प्रकाश स्वरूप अर्थात खुद में ज्ञानवान ) न ( नहीं है )
सूत्रार्थ :- वह चित्त दृश्य होने के कारण ( प्रकृति से निर्मित ) स्वयं ज्ञानवान ( चेतन ) नहीं है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में चित्त को प्रकृति से निर्मित जड़ पदार्थ होने के कारण ज्ञानवान नहीं माना है ।
चित्त केवल दृश्य मात्र है । दृश्य का अर्थ है जिसके द्वारा देखा जाता है । आत्मा को दृष्टा कहा जाता है अर्थात जो देखता है या जो देखने वाला होता है । उदाहरण के लिए आँखों द्वारा देखा जाता है, कानों के द्वारा सुना जाता है और नासिका द्वारा सूँघा जाता है । इन सभी का कर्ता अर्थात करने वाला वह पुरुष ( आत्मा ) होता है । वह आत्मा ही आँखों से देखती हैं, कानों से सुनती है और नासिका से सूँघने का काम करती है ।
इस जगत में जो भी दृश्य पदार्थ होते हैं । वह सभी जड़ होते हैं । उनकी अपनी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं होती । वह सभी अपना कार्य आत्मा की प्रेरणा ( सहयोग ) से ही पूर्ण करते हैं । आत्मा के बिना वह कोई भी अपने कार्य को पूर्ण नहीं कर सकता । हमारी इन्द्रियों, मन व चित्त में जो चेतना दिखाई देती है । वह चेतना उनकी स्वयं की नहीं होती । बल्कि वह तो उस चेतन आत्मा का प्रभाव होता है । जिसकी प्रेरणा व सहयोग से हमारी इन्द्रियाँ, मन व चित्त में हमें चेतना दिखाई देती है । वह वास्तव में आत्मा की ही चेतना होती है ।
उदाहरण स्वरूप :- रात में सड़क पर गाड़ी चलाते हुए आपने देखा होगा कि सड़क के बीच में व स्पीड ब्रेकर के ऊपर बनी सफेद पट्टियों पर गाड़ी की लाईट लगते ही वह चमक उठती हैं । लेकिन यदि हम गाड़ी की लाईट को बुझा देते हैं । तो वह पट्टियाँ चमकना बन्द हो जाती हैं । यहाँ पर आत्मा गाड़ी की लाईट व हमारी इन्द्रियाँ, मन व चित्त सड़क पर बनी सफेद पट्टियों का प्रतिनिधित्व करती हैं । जैसे ही आत्मा का सम्बन्ध इन्द्रियों, मन व चित्त से होता है । वैसे ही उनमें चेतना का संचार हो जाता है । और जैसे ही आत्मा का सम्बन्ध उनसे टूटता है । वैसे ही वह अपने वास्तविक स्वरूप अर्थात जड़ रूप में आ जाती हैं । जैसे सड़क की पट्टियाँ बिना रोशनी के अपने स्वरूप में आ जाती हैं ।
अतः सभी इन्द्रियाँ, मन व चित्त जड़ पदार्थ हैं । आत्मा के प्रभाव में आने से इन सभी में चेतना का संचार हो जाता है ।
Thanku sir??
ॐ गुरुदेव*
बहुत सुन्दर व्याख्या ।
आपको बहुत_ बहुत धन्यवाद।
Thank you sir
Dhanyawad.