न चैकचित्ततन्त्रं वस्तु तदप्रमाणकं तदा किं स्यात् ।। 16 ।।
शब्दार्थ :- च ( और ) वस्तु ( दिखाई देने वाला पदार्थ ) एकचित्त ( एक ही चित्त के ) तन्त्रम् ( अधीन या नियंत्रण में ) न ( नहीं है ) तद् ( जब वह पदार्थ ) अप्रमाणकम् ( बिना किसी प्रमाण अर्थात सबूत के ) तदा ( तब अर्थात उस समय ) किम् ( क्या ) स्यात् ( उस वस्तु अथवा पदार्थ का क्या होगा ? )
सूत्रार्थ :- कोई भी वस्तु या पदार्थ किसी भी एक चित्त के अधीन नहीं होती है । क्योंकि जब वह वस्तु किसी चित्त का प्रमाण नहीं रहेगी । अर्थात चित्त के अभाव में उस वस्तु का क्या होगा ?
व्याख्या :- इस सूत्र में वस्तु अथवा पदार्थ को किसी एक चित्त के अधीन नहीं माना है । अर्थात स्वतंत्र माना है ।
जो भी इस जगत में दृश्य अर्थात दिखने वाले पदार्थ हैं । वे सभी किसी एक चित्त के अधीन अथवा नियंत्रण में नहीं हैं । चित्त हमें उस वस्तु के बारे में ज्ञान अर्थात जानकारी उपलब्ध करवाने का कार्य करता है ।
यदि हम यह मान लें कि वस्तु या पदार्थ चित्त के ही अधीन होते हैं । तो जब चित्त किसी और वस्तु या पदार्थ में लग जाता है । तब उस पहले वाले पदार्थ का क्या होगा ? क्या उसकी सत्ता समाप्त हो जाएगी ? और फिर से जब चित्त उस पदार्थ में लगता है । तब क्या वह पदार्थ जो समाप्त हो गया था वह फिर से उत्पन्न होगा ?
इन सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं ही होगा । क्योंकि कोई भी पदार्थ या वस्तु चित्त के अधीन हो ही नहीं सकती । यदि ऐसा होता तो सभी पदार्थों व वस्तुओं का उत्त्पत्ति कर्ता चित्त ही होता । लेकिन ऐसा नहीं है । हमारा चित्त अलग- अलग समय पर विभिन्न विषयों के साथ सलंग्न रहता है । उसका कार्य सभी वस्तुओं के विषय में जानकारी प्राप्त करना है ।
यदि ऐसा होता तो सामने खड़े व्यक्ति की कमर नहीं दिखाई देती है । तो इसका अर्थ यह तो नहीं होता कि उसकी कमर है ही नहीं । ऐसे तो कहीं दूर स्थान पर रखी वस्तु तो फिर समाप्त ही हो जाएगी । यह तो केवल प्रत्यक्ष प्रमाण की बात हुई । लेकिन जो प्रत्यक्ष नहीं दिख रहा तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह वस्तु समाप्त हो गई है । चित्त की अपनी एक सीमा होती है । वह उस सीमा से बाहर कार्य नहीं कर सकता । और न ही किसी वस्तु को अपने अधीन कर सकता है । क्योंकि वह उनको उत्पन्न करने वाला नहीं है ।
अतः चित्त के किसी एक वस्तु या अपने ही कारण में सलंग्न होने से अन्य पदार्थों का अभाव नहीं होता है । दिखने वाली वस्तु की अपनी अलग से स्वतंत्र सत्ता होती है । इसलिए कोई भी दिखाई देने वाली वस्तु या पदार्थ चित्त के अधीन नहीं होता ।
Thank you sir
Dhanyawad.
Nice guru ji.