परिणामैकत्वाद्वस्तुतत्त्वम् ।। 14 ।।
शब्दार्थ :- परिणाम ( परिणाम अर्थात फल के ) एक्त्वाद् ( एक होने से ) वस्तु ( वस्तु अथवा पदार्थ में ) तत्त्वम् ( एकत्व अर्थात एक समान भाव आ जाता है )
सूत्रार्थ :- परिणाम एक ही प्रकार का होने से वस्तु या पदार्थ में भी उसी प्रकार का समान भाव आ जाता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में परिणाम व वस्तु के एक समान भाव का वर्णन किया गया है ।
पिछले सूत्र में हमने प्रकृति के तीन गुणों की चर्चा की थी । जिसमें बताया गया था कि सभी वस्तुओं व पदार्थों की उत्पत्ति का आधार यही तीन गुण ( सत्त्व, रज व तम ) हैं । लेकिन अलग- अलग परिस्थिति के अनुसार इन गुणों की मात्रा घटती अथवा बढ़ती रहती है । जिसके कारण से हमें सभी पदार्थों में अनेकता या भेद दिखाई देता है । लेकिन उन सभी का परिणाम एक ही होने से वह मूल रूप से एक ही होते हैं ।
जैसे ही सत्त्वगुण बढ़ता है वैसे ही व्यक्ति के व्यवहार व बुद्धि का स्तर भी उच्च कोटि का हो जाता है । लेकिन जैसे ही व्यक्ति के अन्दर रजोगुण की मात्रा बढ़ती है वैसे ही वह चंचल स्वभाव वाला बन जाता है । और इसी प्रकार जब व्यक्ति के अन्दर तमोगुण का प्रभाव बढ़ता है । उसी समय वह मूढ़ बुद्धि के समान व्यवहार करने लगता है ।
इस प्रकार अलग- अलग गुणों के प्रभाव से व्यक्ति के अन्दर अलग- अलग परिवर्तन आने लगते हैं । लेकिन मूल रूप से तो वह व्यक्ति एक ही होता है । फिर भी उसका व्यवहार तीन प्रकार का क्यों होता है ? इसका उत्तर यही है कि गुणों का प्रभाव बदलने से व्यक्ति का व्यवहार भी बदल जाता है । जिस प्रकार के गुण का प्रभाव उसके चित्त में होगा । उसी प्रकार का व्यवहार वह करेगा । इसको हम कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं ।
आप सभी ने चीनी, खाण्ड, गुड़, शक्कर आदि का सेवन अवश्य ही किया होगा । इन सभी पदार्थों का नाम सुनने से लगता है कि यह सभी अलग- अलग पदार्थ होते हैं । और यह सही भी है कि यह सभी अलग- अलग पदार्थ होते हैं । लेकिन इन सभी पदार्थों का उत्पत्ति परिणाम तो एकमात्र गन्ना ही होता है । अर्थात इन सभी पदार्थों की उत्पत्ति तो गन्ने से ही होती है । अन्य किसी पदार्थ से नहीं । इस प्रकार परिणाम के एक होने से वस्तु में भी एक ही भाव उत्पन्न होता है ।
इसे हम एक अन्य उदाहरण द्वारा भी समझने का प्रयास करते हैं – स्वर्ण धातु ( सोने से ) से हम अनेकों आभूषण ( गहने ) बनवाते हैं । जैसे- सोने का हार, चेन, अँगूठी, कड़ा व बालियाँ आदि । इन सभी आभूषणों के अलग- अलग नाम होते हैं । लेकिन इन सभी का मूल तो स्वर्ण धातु अर्थात सोना ही है । जैसे ही हम सोने से बने सभी आभूषणों को अग्नि द्वारा गला देते हैं । तो सभी का अस्तित्व खत्म होकर केवल स्वर्ण धातु ही बचेगी ।
इसलिए इनके नाम का भेद समाप्त होने से इनका एक ही परिणाम हो जाता है । जिससे वस्तु अथवा पदार्थ में भी वही समान भाव उत्पन्न हो जाता है । अतः सभी वस्तुएँ गुण रूप से एक ही होती हैं । उनमें किसी प्रकार का कोई भेद नहीं होता ।
Pranaam Sir! ??thank you.
ॐ गुरुदेव*
बहुत ही अच्छी व्याख्या प्रस्तुत की है आपने।
आपको हृदय से आभार।
Thank you sir
??प्रणाम आचार्य जी! सत्य ज्ञान! धन्यवाद! ओम! ?
Nice guru ji.
Thnku sir jiiii…..to give nice defination of parinam …..