ते व्यक्तसूक्ष्मा गुणात्मान: ।। 13 ।।

 

शब्दार्थ :- ते ( वे अर्थात वह तीनों कालों में विद्यमान रहने वाले सभी पदार्थ ) व्यक्त ( प्रकट अर्थात प्रत्यक्ष ) सूक्ष्मा: ( छिपे हुए अर्थात अप्रत्यक्ष रूप में ) गुणात्मान: ( गुण रूप में मौजूद होते हैं )

 

 

सूत्रार्थ :- तीनों कालों में विद्यमान रहने वाले सभी पदार्थ प्रकट अर्थात प्रत्यक्ष व अप्रकट अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से गुणों के रूप में मौजूद रहते हैं ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में गुणों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष स्वरूप को बताया गया है ।

 

यहाँ पर गुणों के स्वरूप की चर्चा की गई है । गुण तीन प्रकार के होते हैं । सत्त्वगुण, रजोगुण व तमोगुण । प्रकृति भी इन्हीं तीन गुणों से निर्मित है । इसीलिए प्रकृति को त्रिगुणात्मक कहा गया है । तीनों कालों ( भूतकाल, वर्तमान काल व भविष्य काल ) में जितने भी पदार्थ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान होते हैं । वह सभी इन तीन गुणों से ही निर्मित होते हैं । इन तीन गुणों के अभाव में किसी भी पदार्थ का कोई अस्तित्व नहीं है ।

 

इनमें काल के अनुसार बदलाव होता रहता है । जैसे भूतकाल व भविष्य काल में यह गुण अव्यक्त अर्थात अप्रत्यक्ष रूप में होते हैं । और वर्तमान काल में यह गुण  व्यक्त अर्थात प्रत्यक्ष रूप में मौजूद होते हैं । प्रकृति से लेकर महतत्त्व, अहंकार, मन, दस इन्द्रियाँ, पाँच तन्मात्रा, पाँच महाभूत व मनुष्य की उत्पत्ति में भी इन तीनों गुणों का ही योगदान होता है । संसार के सभी पदार्थों की उत्पत्ति का आधार यही तीनों गुण होते हैं । इसीलिए इनको गुण स्वरूप कहकर सम्बोधित किया गया है । यह सब दृश्यमान संसार इन तीन गुणों की ही देन है ।

 

इन सभी गुणों का कोई स्थूल रूप अर्थात दिखाई देने वाला स्वरूप नहीं है । यह सूक्ष्म रूप में ही विद्यमान होते हैं । इनकी क्रिया- प्रतिक्रिया द्वारा ही इनका अनुभव किया जा सकता है । यही त्रिगुणात्मक प्रकृति की विशेषता होती है ।

 

इस प्रकार सभी धर्मों अर्थात पदार्थों का संचालन त्रिगुणों द्वारा ही सम्भव है । यही सभी पदार्थों का आधार हैं ।

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  1. ॐ गुरुदेव*
    गुणों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष स्वरूपों की अति सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की है आपने।इसके लिए आपको हृदय से आभार।

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