तासामनादित्वं चाशिषो नित्यत्वात् ।। 10 ।।
शब्दार्थ :- आशिष: ( जीवित रहने की इच्छा का ) नित्यत्वात् ( सदा बने रहने से ) तासाम् ( उन सभी संस्कारों अथवा वासनाओं का ) अनादित्वं ( प्रवाह आदि काल से ) च ( ही है )
सूत्रार्थ :- जीवन को जीने की लालसा या इच्छा का सदा बने रहने से उन वासना रूपी संस्कारों का प्रवाह आदिकाल से ही निरन्तर चलता रहता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में वासना का निरन्तर बने रहने का कारण जीने की इच्छा को बताया है ।
जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु होना भी निश्चित है । यह सनातन सत्य है । लेकिन इसके बावजूद भी लोग सदा जीवित रहने की लालसा को मन में पाले बैठे रहते हैं । कोई यह नहीं चाहता कि मेरा कभी भी अन्त हो । यह सदा जीवित रहने की लालसा ही कर्म संस्कारों का मूल है ।
कोई भी जीव क्यों न हो सभी को मृत्यु से भय लगा रहता है । चाहे कोई धनवान हो या निर्धन जैसे ही उनके प्राण संकट में आते हैं । वैसे ही वह झटपटाना ( तड़पना ) शुरू कर देते हैं । उनके चेहरे का रंग फीका पड़ जाता है । डर के मारे शरीर में कम्पन होना शुरू हो जाती है । फिर चाहे वह इन्सान हो या जानवर । सभी मृत्यु से भयभीत रहते हैं । इसे ही अभिनिवेश नामक क्लेश कहा गया है ।
अब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों होता है कि सभी प्राणी मृत्यु के नाम से डरते हैं ? इसका हल हमें पिछले सूत्र में मिलता है । पिछले सूत्र में बताया गया था कि हमारे अन्दर पूर्व जन्म की स्मृति व संस्कार सूक्ष्म रूप से विद्यमान रहते हैं । उन स्मृतियों व संस्कारों में हमारी
मृत्यु के भी संस्कार मौजूद होते हैं । तभी मृत्यु का आभास होने मात्र से ही हमारे अन्दर भय का माहौल उत्पन्न हो जाता है । क्योंकि जब इससे पूर्व जन्म में हमारी मृत्यु हुई होगी तब हमें जो पीड़ा या दुःख हुआ होगा । उसी दुःख व पीड़ा के संस्कार पुनः जीवित हो उठते हैं । जिससे हम भयभीत हो जाते हैं ।
इस प्रकार जीवन के प्रति प्रेम और मृत्यु के प्रति भय की कामना होने से ही वासनाओं का प्रवाह अनादि काल से चलता आ रहा है ।
?प्रणाम आचार्य जी! अभिनिवेश के कारण का बहुत ही तार्किक सत्य आपने उजागर किया है ! इस माग॔दश॔न के लिए आपका आभार आचार्य जी! सुन्दर! ओम
Dhanyawad.
Thank you sir