व्युत्थाननिरोधसंस्कारयोरभिभवप्रादुर्भावौ  निरोधक्षणचित्तान्वयो निरोध परिणाम: ।। 9 ।।

 

शब्दार्थ :- व्युत्थान ( चित्त की वह अवस्था जिसमें संस्कार प्रभावी होते हैं । ) निरोध ( वह अवस्था जिसमें संस्कार दब जाते हैं । ) संस्कारयो: ( विचार या घटनाओं की स्मृति या याददाश्त ) अभिभव ( छिपना या दबना ) प्रादुर्भावौ ( उभरना या प्रकट होना ) निरोध ( संस्कारो के दबने की स्थिति ) क्षण ( समय या काल ) चित्त ( चित्त ) अन्वय: ( मिश्रित या संयुक्त होना ) निरोधपरिणाम: ( निरोध का परिणाम या फल है । )

 

सूत्रार्थ :- चित्त निरोध की अवस्था (  समय ) में चित्त व्युत्थान और निरोध इन दोनों ही संस्कारो से संयुक्त होता है । इसे ही चित्त के निरोध का परिणाम कहा गया है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में चित्त के निरोध परिणाम की अवस्था का वर्णन किया गया है ।

 

यह जो व्युत्थान संस्कार होते हैं वह चित्त के ही धर्म होते हैं । लेकिन इस अवस्था में इनको वास्तविक स्वरूप का ज्ञान नहीं होता है । इसी कारण ज्ञान के विषय का निरोध होने पर भी इनका निरोध नहीं हो पाता है ।

 

जितने भी निरोध संस्कार हैं वह भी चित्त के ही धर्म हैं । उनके दबने और उभरने या छिपने व प्रकट होने का अर्थ यह है कि जो व्युत्थान संस्कार होते हैं वह दब जाते हैं अर्थात उनका प्रभाव समाप्त हो जाता है और जो निरोध के संस्कार होते हैं वह उभर जाते हैं अर्थात वह प्रभावशाली हो जाते हैं ।

 

हमारा चित्त सत्त्वगुण, रजोगुण व तमोगुण से निर्मित है । जिसके कारण जैसे ही किसी गुण का प्रभाव कम या ज्यादा होता है वैसे ही यह चित्त प्रत्येक क्षण ( समय ) में अलग- अलग संस्कारो से युक्त होता रहता है । इसे ही चित्त के निरोध का परिणाम कहते हैं ।

Related Posts

September 11, 2018

सत्त्वपुरुषयो: शुद्धिसाम्ये कैवल्यमिति ।। 55 ।।     शब्दार्थ :- सत्त्व ( बुद्धि ) ...

Read More

September 10, 2018

तारकं सर्वविषयं सर्वथाविषयमक्रमं चेति विवेकजं ज्ञानम् ।। 54 ।।   शब्दार्थ :- तारकं ( ...

Read More

September 9, 2018

जातिलक्षणदेशैरन्यताऽवच्छेदात्तुल्योस्तत: प्रतिपत्ति: ।। 53 ।।   शब्दार्थ :- जाति ( कोई विशेष समूह ) ...

Read More

September 8, 2018

क्षणतत्क्रमयो: संयमाद्विवेकजं ज्ञानम् ।। 52 ।।   शब्दार्थ :- क्षण ( छोटे से छोटे ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. ॐ गुरुदेव*
    निरोध अवस्था के परिणाम का बहुत सुंदर वर्णन किया है।

  2. व्युथन संस्कारों को थोड़ा और स्पष्ट करने की कृपा करें
    निरोध संस्कार को भी स्पष्ट करें
    धन्यवाद

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}