तदपि बहिरङ्गं निर्बीजस्य ।। 8 ।।

 

शब्दार्थ :- तदपि ( वह भी अर्थात धारणा, ध्यान व समाधि भी ) निर्बीजस्य ( निर्बीज अथवा असम्प्रज्ञात समाधि के )  बहिरङ्गं ( बाहरी साधन हैं । )

 

सूत्रार्थ :- वह धारणा, ध्यान व समाधि भी निर्बीज अथवा असम्प्रज्ञात समाधि के बाहरी साधन हैं ।

  

व्याख्या :- इस सूत्र में धारणा, ध्यान व समाधि को असम्प्रज्ञात समाधि के बाहरी साधन बताया है ।

 

समाधि दो प्रकार की कही गई है । एक सम्प्रज्ञात व दूसरी असम्प्रज्ञात । सम्प्रज्ञात को सबीज व असम्प्रज्ञात को निर्बीज समाधि भी कहते हैं ।

 

जिस प्रकार यम, नियम आदि बहिरङ्ग ( बाहरी ) पाँच साधनों को सम्प्रज्ञात समाधि के लिए इनको बाहरी साधन माना जाता है । और धारणा, ध्यान व समाधि को सम्प्रज्ञात अथवा सबीज समाधि हेतु इनको अन्तरङ्ग ( आन्तरिक ) साधन माना जाता जाता है । ठीक इसी प्रकार धारणा, ध्यान व समाधि को निर्बीज अथवा असम्प्रज्ञात समाधि के लिए बाहरी साधन माना जाता है ।

 

धारणा, ध्यान व समाधि को निर्बीज समाधि के लिए बाहरी साधन इसलिए माना जाता है क्योंकि साधक को असम्प्रज्ञात समाधि की स्थिति तभी प्राप्त होती है जब इन तीनों का अभाव हो जाता है ।

 

जो योग के अंग या साधन सम्प्रज्ञात समाधि के अन्तरङ्ग ( आन्तरिक ) साधन होते हैं । वही साधन असम्प्रज्ञात समाधि के बहिरङ्ग ( बाहरी ) साधन होते हैं ।

 

धारणा, ध्यान व समाधि से योगी में वैराग्य का भाव उत्पन्न होता है । जो सम्प्रज्ञात समाधि का कारण बनता है । लेकिन असम्प्रज्ञात समाधि का कारण तो परवैराग्य होता है । जिसमें धारणा, ध्यान व समाधि का अभाव होता है । तभी असम्प्रज्ञात समाधि को निरालम्बन कहते हैं । जहाँ सभी साधनों का आलम्बन छूट जाता है ।

 

अतः धारणा, ध्यान व समाधि निर्बीज अथवा असम्प्रज्ञात समाधि के बाहरी साधन होते हैं । और परवैराग्य को निर्बीज समाधि का अन्तरङ्ग अर्थात आन्तरिक साधन कहा जाता है ।

Related Posts

September 11, 2018

सत्त्वपुरुषयो: शुद्धिसाम्ये कैवल्यमिति ।। 55 ।।     शब्दार्थ :- सत्त्व ( बुद्धि ) ...

Read More

September 10, 2018

तारकं सर्वविषयं सर्वथाविषयमक्रमं चेति विवेकजं ज्ञानम् ।। 54 ।।   शब्दार्थ :- तारकं ( ...

Read More

September 9, 2018

जातिलक्षणदेशैरन्यताऽवच्छेदात्तुल्योस्तत: प्रतिपत्ति: ।। 53 ।।   शब्दार्थ :- जाति ( कोई विशेष समूह ) ...

Read More

September 8, 2018

क्षणतत्क्रमयो: संयमाद्विवेकजं ज्ञानम् ।। 52 ।।   शब्दार्थ :- क्षण ( छोटे से छोटे ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. ?प्रणाम आचार्य जी! यह सूत्र बहुत ही गुढ अथ॔ वाला है जिसकी व्याख्या आपने बहुत ही सरल शब्दो मे की है जिससे यह समझने योग्य हो गया है, आपकी सुन्दर कला व ज्ञान के लिए आपको बारम्बार प्रणाम आचार्य जी! धन्यवाद ! ओ3म् ?

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}