तद्वैराग्यादपि दोषबीजक्षये कैवल्यम् ।। 50 ।।

 

शब्दार्थ :- तद् ( तब उस सिद्धि अर्थात विशोका नामक सिद्धि से ) अपि ( भी )  वैराग्यात् ( वैराग्य हो जाने पर ) दोष ( दोष या अविद्या आदि क्लेशों के ) बीज ( बीजों का ) क्षये ( नाश होने से ) कैवल्य ( मोक्ष की प्राप्ति होती है )

 

  

सूत्रार्थ :- जब योगी को उस विशोका नामक सिद्धि से भी वैराग्य हो जाने से उसके सभी अविद्या आदि क्लेशों का नाश हो जाता है । जिससे योगी को मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

 

 

व्याख्या :-  इस सूत्र में विशोका नामक सिद्धि में भी वैराग्य होने से मिलने वाले फल की चर्चा की गई है ।

 

जैसे ही योगी का रजोगुण व तमोगुण रूपी आवरण हट जाता है वैसे ही उसमें सत्त्वगुण रूपी प्रकाश का उजाला प्रकट हो जाता है । जिससे उसके अन्दर विवेक ज्ञान की उत्पत्ति होती है । उसी विवेक ज्ञान से उसको विशोका नामक सिद्धि प्राप्त होती है ।

 

इसी सिद्धि से योगी को बुद्धि और पुरुष अर्थात आत्मा के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान हो जाता है कि यह दोनों अलग- अलग हैं । इस प्रकार जब योगी को इनके अलग- अलग स्वरूप का पता चलता है । तब उसकी विशोका नामक सिद्धि से मिलने वाले फलों से भी विरक्ति अर्थात वैराग्य उत्पन्न हो जाता है । जिससे वह उस सिद्धि से मिलने वाले फलों में नहीं फँसता । बल्कि वह इन सभी सिद्धियों को साधना में बाधा समझ कर उनका त्याग कर देता है ।

 

इस वैराग्य भाव के उत्पन्न होने से योगी के अविद्या आदि क्लेशों के भाव दग्धबीज हो जाते हैं । दग्धबीज का अर्थ होता है पूर्ण रूप से नष्ट हो जाना । जब भी हम किसी पेड़ या पौधे के बीज को उगाने के लिए भूमि में डालते हैं । तो उचित खाद – पानी के मिलने वह अकुंरित हो जाता है । लेकिन यदि किसी पेड़ या पौधे के बीज को हम अग्नि में जलाकर उसे भूमि में डाल देते हैं । तो उसे उचित खाद- पानी देने से भी वह अंकुरित नहीं होता । क्योंकि बीज को जलाने के बाद उसके अंकुरित होने की सम्भावना सदा के लिए समाप्त हो जाती है । फिर चाहे हम उसमें कितना भी खाद- पानी डालते रहें ।

 

ठीक इसी प्रकार जब योगी को विशोका सिद्धि के फल से भी वैराग्य हो जाता है । तो उसके अविद्या आदि क्लेश भी दग्धबीज भाव को प्राप्त हो जाते हैं । जिससे वह दोबार कभी भी उत्पन्न नहीं होते ।

 

इस प्रकार जब योगी अपने सभी क्लेशों को दग्धबीज कर देता है तो उसकी सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है । जिससे वह निर्बीज समाधि को प्राप्त करता है । इसी अवस्था को कैवल्य अर्थात मोक्ष कहा जाता है ।

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