रूपलावण्यबलवज्रसंहननत्वानि कायसम्पत् ।। 46 ।।
शब्दार्थ :- रूप ( सुन्दर ) लावण्य ( चमक युक्त या तेजस्वी ) बल ( बलवान अर्थात मजबूत मांशपेशियों वाला ) वज्र ( पत्थर की भाँति मजबूत या कठोर ) संहननत्वानि ( के समान संयुक्त या संगठित होना ) कायसम्पत् ( शरीर की सम्पदा अर्थात सम्पत्ति है )
सूत्रार्थ :- शरीर का सुन्दर होना, तेजस्वी होना, बलवान होना व पत्थर की भाँति कठोर होना । ये सब शरीर की सम्पत्ति है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में शरीर की विशेष सम्पत्ति का उल्लेख किया गया है ।
सूत्र संख्या 44 में पंच महाभूतों पर विजय प्राप्त करने की बात कही गई थी । जिसके परिणामस्वरूप योगी को अणिमा आदि आठ सिद्धियों, भूतों से बिना किसी रुकावट के कार्य होना व शरीर का सामर्थ्य बढ़ने जैसी सिद्धियों की प्राप्ति के फल की बात कही गई है ।
उनमें से अणिमा आदि आठ सिद्धि व भूतों से किसी तरह की बाधा न मिलने की चर्चा हम इससे पहले सूत्र में कर चुके हैं ।
इस सूत्र में हम भूतों पर ही विजय प्राप्त करने के बाद मिलने वाली सिद्धि जो हमारे शरीर की सामर्थ्य को बढ़ाती है । उसकी चर्चा करेंगे ।
शरीर की सामर्थ्यता को मुख्यतः चार प्रकार से माना गया है । जिसका वर्णन इस प्रकार है :-
- रूप :- रूप का अर्थ होता है सुन्दरता । जब शरीर देखने में बहुत अच्छा लगता है तब वह रूप कहलाता है । इसमें शरीर के रंग और आकृति की मुख्य भूमिका रहती है ।
- लावण्य :- लावण्य का अर्थ होता है कान्ति या चमक । हमारे चेहरे की चमक को ही लावण्य कहा जाता है । इसको तेज अथवा तेजस्विता भी कहा जाता है । यह मुख्य रूप से चेहरे व आँखों में ही होती है ।
- बल :- बल का अर्थ होता है ताकत । शरीर जितना बलवान अथवा ताकतवर होता है । उसमें उतना ही ज्यादा बल पाया जाता है । शक्ति को भी बल का दूसरा रूप कहते हैं ।
- वज्र :- वज्र का अर्थ पत्थर या पहाड़ होता है । वज्र शब्द का प्रयोग एक बहुत ही ताकतवर हथियार के रूप में भी किया जाता है । जिसका मतलब होता है न टूटने वाला । इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारा शरीर भी पत्थर की भाँति ही कठोर हो जाता है । इसका अर्थ है कि शरीर की मांशपेशियाँ बहुत ज्यादा मजबूत होती है । जो किसी भी सामान्य कारण व आसानी से नहीं टूटती ।
इस प्रकार पंच महाभूतों पर विजय प्राप्त करने से योगी का शरीर सुन्दर, चमक वाला, ( तेजस्वी ) बलशाली व अत्यन्त मजबूत बन जाता है|
??प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर व्याख्या!आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! ओम ?
Thank you sir
प्रणाम आचार्य जी । बहुत सुन्दर वर्णनं किया है सूत्र ।आपका बहुत धन्यवाद । जय भारत ।
Dhanyawad
Guru ji nice explain about body sampati.
ॐ गुरुदेव*
अति सुन्दर व्याख्या।
धन्यवाद।