ततोऽणिमादिप्रादुर्भाव: कायसम्पत्तद्धर्मानभिघातश्च ।। 45 ।।
शब्दार्थ :- तत: ( उस अर्थात उन भूतों पर विजय प्राप्त करने पर ) अणिमादि ( अणिमा आदि सिद्धियाँ ) प्रादुर्भाव: ( प्रकट होती हैं ) काय ( शरीर ) सम्पत् ( सामर्थ्यवान अर्थात बलवान होता है ) च ( और ) तद्- धर्म ( तब उन भूतों के धर्मों से ) अनभिघात: ( कोई बाधा नहीं होती )
सूत्रार्थ :- उन सभी पंच भूतों पर विजय प्राप्त करने के बाद योगी को अणिमा आदि आठ सिद्धियों की प्राप्ति होती है । शरीर का सामर्थ्य बढ़ता है अर्थात शरीर बलवान बनता है । और पंच भूतों के धर्म भी किसी प्रकार की कोई बाधा उत्पन्न नहीं करते हैं ।
व्याख्या :- इस सूत्र में पंच भूतों पर विजय प्राप्त करने के बाद योगी को मिलने वाली सिद्धियों का वर्णन किया गया है ।
सभी पंच महाभूतों को जीतने पर योगी को अणिमा आदि आठ सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं । जिनका वर्णन इस प्रकार है :-
- अणिमा :- अणिमा शब्द अणु से बना है जिसका अर्थ है छोटे से छोटा अर्थात जो दिखाई न दे । अणिमा सिद्धि के प्राप्त होने से योगी अपने को अणु के समान सूक्ष्म बना लेता है । जैसे- हनुमान ने रावण की लंका में प्रवेश करते समय किया था ।
- लघिमा :- लघिमा का अर्थ है हल्का होना । इस सिद्धि से योगी स्वयं को बहुत हल्का बना लेता है । जैसा कि महर्षि घेरण्ड कहते हैं कि प्राणायाम के अभ्यास से साधक हल्का हो जाता है ।
- महिमा :- महिमा का अर्थ है बड़ा या बड़ा आकार होना । इस सिद्धि से योगी अपने आप को विराट अर्थात बड़ा बना लेता है । इसमें योगी स्वयं को विस्तृत कर लेता है ।
- प्राप्ति :- प्राप्ति का अर्थ है प्राप्त होना । बिना किन्ही अथक प्रयासों के जो केवल संकल्प शक्ति से प्राप्त हो जाए । ऐसी सिद्धि को प्राप्ति कहते हैं ।
- प्राकाम्य :- प्राकाम्य का अर्थ है कामना से परे अर्थात कामना से भी आगे । जब यह सिद्धि प्राप्त होती है तो योगी की कोई भी कामना अधूरी नहीं रहती ।
- वशित्व :- वशित्व का अर्थ है वश में या नियंत्रण में करना । जब योगी को यह सिद्धि मिलती है तो वह बहुत सारे पदार्थों को अपने वश में कर लेता है ।
- ईशित्व :- ईशित्व का अर्थ है उत्त्पत्ति व संहार करने की शक्ति होना । इससे योगी में बहुत सारे पदार्थों को उत्पन्न व नष्ट करने का सामर्थ्य आ जाता है ।
- यत्रकामावसायित्व :- यत्रकामावसायित्व का अर्थ है केवल कामना मात्र से सभी संकल्प पूरे हो जाना । इस सिद्धि से योगी केवल कामना मात्र से सभी संकल्प पूरे कर लेता है । इसे सत्य सिद्ध सिद्धि कहा जाता है । इसमें योगी के सोचने मात्र से सभी संकल्प पूरे हो जाते हैं ।
इन सिद्धियों के अलावा भूतों पर विजय प्राप्त करने से योगी के शरीर का सामर्थ्य बढ़ता है । सामर्थ्य का अर्थ है शरीर का रंग- रूप, बल और मजबूती का बढ़ना । ईन सभी का अगले सूत्र में विस्तार से वर्णन किया जाएगा ।
इसके अतिरिक्त पृथ्वी आदि पाँचों महाभूत भी योगी को किसी तरह की कोई बाधा उत्पन्न नहीं करते हैं । इस प्रकार भूतों पर विजय प्राप्त किया हुआ योगी पृथ्वी की कठोरता, जल की आद्रता, ( गीलापन ) अग्नि की ऊष्णता, वायु के वेग व आकाश अनावरण दृष्टि से भी बाधित नहीं होता । अर्थात यह सभी महाभूत योगी के लिए किसी प्रकार की रुकावट नहीं बनते ।
Ashta siddhi me garima namak siddhi hai kya.
Please bataye.
Dhanyawad.
प्रणाम आचार्यजी । बहुत सुंदरतासे सूत्रका स्पष्टीकरण किया है । आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
Guru ji nice explain about benefit of five bhutas victory.
Thank you sir
??प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर सूत्र व्याख्या! Dhnyavad?!
ॐ गुरुदेव*
पंच महाभूतों पर विजयोपरान्त प्राप्त अष्ट सिद्धियों का
बहुत ही सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया है गुरुदेव।
आपको हृदय से आभार।