स्थूलस्वरूपसूक्ष्मान्वयार्थवत्त्वसंयमाद् भूतजय: ।। 44 ।।

 

शब्दार्थ :- स्थूल ( जिसका कोई आकार हो या कोई ठोस पदार्थ ) स्वरूप ( लक्षण या उनकी विशेषता ) सूक्ष्म ( जिसे ठोस रूप में या प्रत्यक्ष रूप से न देखा जाए ) अन्वय ( अति सूक्ष्म या उत्पत्ति का आधार ) अर्थवत्त्व ( उद्देश्य या प्रयोजन ) संयमाद्  ( संयम करने से ) भूत ( इन सभी पंच महाभूतों पर ) जय: ( विजय प्राप्त हो जाती है )

 

 

सूत्रार्थ :- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश पंच महाभूत होते हैं । इन सभी पंच महाभूतों की स्थूल, स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय और अर्थवत्त्व नामक पाँच अवस्थाएँ होती हैं । इन सभी में संयम करने पर योगी सभी पंच महाभूतों पर विजय प्राप्त कर लेता है ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में सभी पंच महाभूतों पर विजय प्राप्त करने की सिद्धि का वर्णन किया गया है ।

 

सभी भूतों की पाँच अवस्थाएँ होती हैं । जिनका वर्णन इस प्रकार है :-

 

  1. स्थूल अवस्था :- सभी पंच महाभूतों का अपना एक विशेष गुण होता है । जिसे हम अपनी इन्द्रियों द्वारा महसूस करते हैं और उनकी पहचान करते हैं । जैसे- पृथ्वी का गुण गन्ध, जल का गुण रस, अग्नि का गुण रूप, वायु का गुण स्पर्श व आकाश का गुण शब्द है । यह सभी इन महाभूतों की स्थूल अवस्था कहलाती है ।
  2. स्वरूप अवस्था :- इन सभी महाभूतों के अपने अलग- अलग लक्षण भी होते हैं । जिनसे हमें इनके अलग- अलग लक्षणों का भी पता चलता है । जैसे – पृथ्वी का ठोस, जल का तरल, अग्नि का उष्णता या प्रकाश, वायु का गति व आकाश का अवकाश अर्थात खालीपन होना । यह सभी महाभूतों के लक्षण होते हैं ।
  3. सूक्ष्म अवस्था :- किसी भी पदार्थ या वस्तु की सूक्ष्म अवस्था वह होती है जिसमें उसका ठोस या प्रत्यक्ष रूप न दिखाई दे । यह सभी महाभूत इन सूक्ष्म अंशों से बने होते हैं । अर्थात यह स्थूल भूतों की उत्पत्ति का कारण हैं । इनको सूक्ष्म महाभूत या तन्मात्रा भी कहा जाता है । जैसे- गन्ध से पृथ्वी की, रस से जल की, रूप से अग्नि की, स्पर्श से वायु की व शब्द से आकाश की उत्पत्ति होती है । यह इन सभी भूतों का सूक्ष्म रूप है ।
  4. अन्वय अवस्था :- यह भूतों की सूक्ष्मतर ( सूक्ष्म से भी सूक्ष्म ) अवस्था होती है । जो सभी सूक्ष्म महाभूतों या तन्मात्राओं का भी आधार होती है । इन्ही से सभी सूक्ष्मों तथा स्थूलों की उत्पत्ति होती है । यह सूक्ष्मतर पदार्थ तीन होते हैं :- 1. सत्त्वगुण, 2. रजोगुण व 3. तमोगुण । इन त्रिगुणों पर ही भूतों की बाकी की अवस्थाएँ आश्रित होती हैं ।
  5. अर्थवत्त्व अवस्था :- अर्थतत्त्व का अर्थ होता है किसी भी पदार्थ का प्रयोजन अर्थात उद्देश्य होना । यहाँ पर इस प्रकृति के दो ही प्रयोजन होते हैं । एक तो जीवात्मा को भोग अर्थात सभी वस्तुओं का उपयोग करवाना और दूसरा मुक्ति, मोक्ष या कैवल्य प्रदान करवाना । इनमें से भोग का हम राग के वशीभूत होकर करते हैं । और मुक्ति या कैवल्य की प्राप्ति हमें वैराग्य द्वारा होती है ।

 

इस प्रकार जब योगी इन पंच महाभूतों की इन पाँचों अवस्थाओं में संयम कर लेता है । तब वह इन सभी पंच महाभूतों पर विजय प्राप्त कर लेता है । इन सभी भूतों पर विजय प्राप्त करने का फल अगले सूत्र में बताया गया है ।

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  1. ??प्रणाम आचार्य जी! पंच महाभूतो की इन सुन्दर अवस्थाओ से हमे अवगत कराने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी! ओम?

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