ते समाधावुपसर्गा व्युत्थाने सिद्धयः ।। 37 ।।
शब्दार्थ :- ते ( वे ) समाधौ ( समाधि में ) उपसर्गा: ( विध्न अर्थात बाधक हैं और ) व्युत्थाने ( व्युत्थान काल अर्थात भौतिक जीवन में ) सिद्धयः ( सिद्धियाँ हैं )
सूत्रार्थ :- वे ( प्रातिभ, श्रावण, वेदन, आदर्श, आस्वाद और वार्ता ) छ: सिद्धियाँ समाधि की प्राप्ति में विध्न अर्थात बाधा उत्पन्न करती हैं । लेकिन भौतिक जीवन की अवस्था में यह सिद्धियाँ अर्थात सहायक होती हैं ।
व्याख्या :- इस सूत्र में प्रातिभ आदि छ: सिद्धियों को अलग- अलग अवस्था में साधक और बाधक बताया है ।
पिछले सूत्र में वर्णित प्रातिभ आदि छ: सिद्धियों को समाधि प्राप्ति की अवस्था में विध्न अर्थात बाधक माना गया है । वहीं दूसरी तरफ व्युत्थान काल में इन सभी को सिद्धियाँ अर्थात सहायक माना गया है ।
एक बार हम पहले समाधि व व्युत्थान इन दोनों अवस्थाओं को समझ लेते हैं । जिससे इस सूत्र की व्याख्या को समझने में आसानी रहेगी ।
समाधि अवस्था :- समाधि अवस्था वह होती है जिसमें साधक का चित्त समाहित अर्थात एकाग्रचित्त होता है । इस अवस्था में योगी को यदि सिद्धियों की प्राप्ति होती है तो वह समाधि प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न करती हैं । जैसे ही योगी को किसी विशेष प्रकार की सिद्धि की प्राप्ति होती है । वैसे ही वह उसके लौकिक फल की इच्छा करने लगता है । जिससे वह समाधि की स्थिति से दूर होता चला जाता है । क्योंकि जब- जब लौकिक अथवा भौतिक फल की इच्छा बढ़ती है तब- तब साधक साधना से दूर होता जाता है । इसलिए इन सभी सिद्धियों को साधनाकाल में बाधक माना है ।
व्युत्थान काल :- व्युत्थान काल वह होता है जिसमें मनुष्य भौतिक सुख सुविधाओं को प्राप्त करने का प्रयास करता रहता है । इस अवस्था में मनुष्य की चित्त वृत्तियाँ तीव्र गति से काम करती हैं । वह निरन्तर चलायमान रहती हैं । जिससे मनुष्य सकाम कर्म करता रहता है । इस व्युत्थान काल में वे सभी सिद्धियाँ मनुष्य के लिए हितकर साबित होती हैं । क्योंकि जब मनुष्य सकाम कर्म में आस्था रखता है तो वह समाज में अपनी पद- प्रतिष्ठा, मान- सम्मान के लिए ललायित ( प्रयासरत ) रहता है । अतः इस अवस्था में वह सिद्धियाँ मनुष्य के लिए पूरी तरह से हितकर अर्थात सिद्धि कारक हैं ।
Very nice sir, thanks
ॐ गुरुदेव *
बहुत ही सुन्दर व्याख्या
प्रस्तुत की है आपने।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
??प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर वण॔न! शुभ कार्य! धन्यवाद! ओम!?
Dhanyawad
Guru ji nice explain about pratib in different conditions.