मूर्धज्योतिषि सिद्धदर्शनम् ।। 32 ।।
शब्दार्थ :- मूर्ध ( कपाल में स्थित मूर्ध की ) ज्योतिषि ( ज्योति अथवा प्रकाश में संयम करने से ) सिद्ध ( सिद्ध महापुरुषों के ) दर्शनम् ( दर्शन अर्थात उनको देखने या जानने की क्षमता आती है )
सूत्रार्थ :- कपाल प्रदेश में स्थित मूर्ध ज्योति के प्रकाश में संयम करने से सिद्ध योगियों को देखने या जानने की योग्यता आती है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में मूर्ध ज्योति के प्रकाश में संयम करने के फल को बताया गया है ।
मूर्ध ज्योति हमारे कपाल प्रदेश में स्थित एक दिव्य ज्योति है । जिसका स्थान सिर का ऊपरी भाग होता है । इसको हम और भी अच्छे से इस प्रकार समझ सकते हैं । जैसे- एक नवजात ( छोटा बच्चा ) जब पैदा होता है तो उसके सिर के ऊपरी भाग में कुछ हल्का सा गड्डा होता है । जो बहुत ही कोमल होता है । यदि उसे थोड़ा जोर से दबाया जाए तो उसमें छेद भी हो सकता है ।
हमारे शरीर में यही वह स्थान होता है जहाँ पर मूर्ध ज्योति होती है । यह अत्यन्त प्रकाश युक्त स्थान होता है ।
इस स्थान को ब्रह्मरन्ध्र भी कहा जाता है ।
जब योगी इस मूर्ध नाड़ी में संयम कर लेता है तो उसे इस पृथ्वी व द्युलोक अर्थात अन्तरिक्ष
के बीच में विचरण करने वाले ( घूमने वाले ) सभी सिद्ध योगियों ( दिव्य पुरुषों ) के दर्शन होने लगते हैं । जो सामान्य लोगों को दिखाई नहीं देते ।
पृथ्वी और अन्तरिक्ष के बीच वह सिद्ध पुरुष विचरण करते हैं जो जन्म- मरण से मुक्त होते हैं ।
इस सूत्र के विषय में कुछ भाष्यकारों का मानना है कि मूर्ध ज्योति में संयम करने से योगी के अन्दर सिद्ध महापुरुषों को अच्छी प्रकार से जानने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है ।
Very nice sir ji
Thanku so much sir??
ॐ गुरुदेव*
आपका हृदय से आभार।
Guru ji nice explain about benefit of concentration in kapala .
Pranaam Sir! ??Thank you very much for this explanation
??प्रणाम आचार्य जी!सूत्र बहुत ही सुंदर है! उन सभी सिद्ध योगी जन को बारम्बार प्रणाम जिनकी देन व सकारात्मकता से योग आज इतने सुन्दर रूप से जन जन तक फैलता जा रहा है । वे योगी जन हमारे उरपूरवासी होवे कि हम योग की इस सुंदर पराकाष्ठा को प्राप्त होवे । इस संसार को योगमय बनाने के इस सर्वोत्कृष्ट योगदान के लिए मैं आचार्य सोमवार जी की हृदय से आभारी हूँ ।धन्यवाद! चरण स्पर्श सादर प्रणाम आचार्य जी! ????ओम राम!
Very informative.
Thank you sir