कण्ठकूपे क्षुत्पिपासानिवृत्ति: ।। 30 ।।
शब्दार्थ :- कण्ठकूपे ( गले के नीचे गड्डेनुमा भाग में संयम करने से ) क्षुत् ( भूख ) पिपासा ( प्यास से ) निवृत्ति: ( मुक्ति मिल जाती है )
सूत्रार्थ :- कण्ठकूप में संयम करने से योगी साधनाकाल में भूख- प्यास की अनुभूति से मुक्त हो जाता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में कण्ठकूप में संयम करने से मिलने वाले परिणाम को बताया गया है ।
सूत्र की व्याख्या में हम सबसे पहले कण्ठकूप को ही जानने का प्रयास करते हैं । कण्ठकूप हमारे पाचन तंत्र का एक अभिन्न अंग है । हमारे पाचन तंत्र में सबसे पहले हमारे दाँत, लार, जिव्हा, तालु, कण्ठ, कण्ठकूप व उसके बाद आहार नलिका ये सब आते हैं । इन सभी अंगों के द्वारा ही हम किसी भी आहार को ग्रहण करते हैं ।
जब योगी अपने कण्ठकूप में संयम कर लेता है तो उसे भूख- प्यास परेशान नहीं कर पाती । वह अपनी योग साधना को भूख – प्यास की बाधा से बाधित नहीं होने देता ।
कोई भी योगी जब योग साधना करता है तो शुरुआत में उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है । जैसे मन की चंचलता, प्रमाद, आलस्य, निद्रा, भूख व प्यास इत्यादि । यह सभी योग मार्ग की बाधाएँ होती हैं, जो योगी को योग मार्ग से विचलित करती हैं । इन सभी बाधाओं में भूख- प्यास भी साधक को बहुत प्रभावित करते हैं । जब साधक का साधना में ध्यान लगने वाला होता है या कुछ ही समय पहले ध्यान लगा होता है और तभी भूख या प्यास सताने लगती है ।
तब भूख- प्यास का अनुभव होते ही लगा हुआ ध्यान टूट जाता है । इससे साधक को मन खिन्न ( दुःखी ) हो जाता है । जिससे साधना आगे नहीं बढ़ पाती । लेकिन यदि योगी साधक अपने कण्ठकूप में संयम कर लेता है, तो उसकी साधनाकाल में लगने वाली भूख- प्यास शान्त हो जाती है ।
यहाँ पर कुछ लोगों का मानना है कि कण्ठकूप में संयम करने से योगी को कभी भी भूख- प्यास नहीं लगती है । लेकिन यह मानना बिलकुल गलत है । क्योंकि बिना भोजन व पानी के तो मनुष्य का जीवित रहना ही असम्भव है । अतः यहाँ पर जो भूख- प्यास की निवृत्ति की बात कही गई है वो केवल साधनाकाल के लिए ही है । पूरे जीवन के लिए नहीं ।
इसलिए कण्ठकूप में संयम करने से योगी अपनी भूख- प्यास पर काफी समय तक नियंत्रण रखने में समर्थ हो जाता है । जिससे वह साधना के समय में लगने वाली भूख- प्यास को आसानी से अपने वश में कर लेता है । इस प्रकार योगी कुछ समय तक अपनी भूख- प्यास से अपने आप को मुक्त कर लेता है । सदैव ( हमेशा ) के लिए नहीं ।
Thanku sir??
Dr. Ji namaste. Bahot hi clearly vivechan aapne kiya hai.
Dhanyawad
कण्ठकूप में संयम केसे होगा?
Thanks sir for your great guidance
Pranaam Sir! ??thank you for this explanation.
Guru ji nice explain about benefit of khantkhup concentration.
??Prnam Aacharya ji! Aapkaapse bhut DHNYAVAD, OM ?
??प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर सूत्र! सुन्दर वण॔न! आपका बहुत बहुत आभार आचार्य जी! ओम राम! ??
Thank you sir