नाभिचक्रे कायव्यूहज्ञानम् ।। 29 ।।
शब्दार्थ :- नाभिचक्रे ( पेट के बीच में स्थित नाभि प्रदेश के अन्दर संयम करने से )
काय ( शरीर की ) व्यूह ( संरचना का ) ज्ञानम् ( ज्ञान हो जाता है )
सूत्रार्थ :- पेट के बीच में स्थित नाभि प्रदेश के मध्य में संयम करने से योगी को पूरे शरीर की संरचना का ज्ञान हो जाता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में नाभि चक्र में संयम करने से मिलने वाले फल के विषय में बताया गया है ।
हमारे पेट के बीच में एक छोटी सी गड्ढानुमा जगह होती है । जिसकी आकृति गोल व हल्की गहरी होती है । यही हमारी नाभि होती है । इसे अंग्रेजी भाषा में नेवल कहा जाता है ।
नाभि हमारे शरीर का केन्द्र बिन्दु होती है । यह शरीर का मध्य अर्थात बीच का हिस्सा होता है । जिस प्रकार पूरे देश का नेतृत्व केन्द्र की सरकार करती है । ठीक उसी प्रकार पूरे शरीर का संचालन यह नाभि प्रदेश करता है । केन्द्र सरकार को जिस प्रकार पूरे देश की स्थिति की सही- सही जानकारी होती है । ठीक वैसे ही नाभि में संयम करने से योगी को पूरे शरीर की संरचना का सही- सही ज्ञान हो जाता है ।
जब योगी अपनी नाभि में संयम करता है तो उसे अपने शरीर की सम्पूर्ण संरचना ( बनावट, अंगों के कार्य, उनकी क्षमता आदि ) का ज्ञान हो जाता है । साथ ही हमारे शरीर के तीनों दोषों ( वात, पित्त व कफ ) सप्त धातुओं का व उन सभी के स्थान का और उनके कार्यों का भली- भाँति ज्ञान हो जाता है ।
इस प्रकार नाभि में संयम करने से योगी को शरीर के अन्दर व बाहर होने वाली सभी गतिविधियों की जानकारी हो जाती है ।
ॐ गुरुदेव*
नाभि चक्र में समय के फल का
सुन्दर वर्णन किया है आपने ।
इसके लिए आपको हृदय से आभार।
ॐ गुरुदेव*
नाभि चक्र में संयम के फल का
सुन्दर वर्णन किया है आपने ।
इसके लिए आपको हृदय से आभार।
Nice explanation thanku sir??
महाराज जी नाभि में ध्यान की विधि और अवधि की जानकारी दी जाए तो अच्छा।
Guru ji best explain about benefit of concentration in nahbi.
???प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर वण॔न! धन्यवाद ! ओम
??
Bhut bdiya guru ji