भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात्  ।। 26 ।।

 

शब्दार्थ :- सूर्ये ( सूर्य में ) संयमात् ( संयम करने से ) भुवन ( लोक – लोकान्तरों का ) ज्ञानम् ( ज्ञान हो जाता है )

 

सूत्रार्थ :- सूर्य में संयम करने से योगी को सभी लोक – लोकान्तरों अर्थात सभी चौदह भुवनों ( लोकों ) का ज्ञान हो जाता है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में सूर्य में संयम करने से मिलने वाले फल को बताया गया है ।

 

जब योगी सूर्य में संयम करता है तो उसे सभी लोक – लोकान्तरों का ज्ञान हो जाता है । सूर्य में संयम से मिलने वाली विभूति को सही प्रकार से समझने के लिए हम पहले इन लोक – लोकान्तरों को जान लेते हैं ।

 

भुवन को ही लोक कहा जाता है । हमारे पुराणों में कुल चौदह (14) भुवन अर्थात लोक माने गए हैं । जिनमें भूलोक ( पृथ्वी ) और छ: लोक इससे ऊपर होते हैं । जो इस प्रकार हैं –

  1. भूर्लोक
  2. अन्तरिक्ष लोक
  3. माहेन्द्र लोक
  4. महर्लोक
  5. जनलोक
  6. तपोलोक
  7. सत्यलोक ।

 

इन्हें हम संक्षेप में इस प्रकार याद कर सकते हैं –

  1. भू:
  2. भुवः अर्थात अंतरिक्ष
  3. स्व: अर्थात माहेन्द्र
  4. मह:
  5. जन:
  6. तप:
  7. सत्यम् ।

 

इनके अतिरिक्त सात लोक भूर्लोक अर्थात पृथ्वी के नीचे भी होते हैं । जो इस प्रकार हैं –

  1. अतल
  2. वितल
  3. सुतल
  4. रसातल
  5. तलातल
  6. महातल
  7. पाताल ।

 

इस प्रकार जब योगी सूर्य में संयम करता है तो उसे इन सभी चौदह भुवनों ( लोकों ) का ज्ञान हो जाता है ।

इस विषय में प्रसिद्ध टीकाकार वाचस्पति मिश्र कहते हैं कि संयम का विषय सुषुम्ना नाड़ी होती है । जिसे सूर्य का द्वार माना जाता है । इसमें संयम करने से असीम ( अत्यधिक ) शक्ति की प्राप्ति होती है । इसलिए जब योगी सूर्य में संयम करता है तो उसे सभी लोक- लोकान्तरों का ज्ञान हो जाता है ।

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  1. ॐ गुरुदेव*
    सूर्य में संयम के फल की
    बहुत ही अच्छी व्याख्या की है आपने ।
    धन्यवाद्।

  2. ?Prnam Aacharya ji! Very well elaborated Sutra, you are the king of elaborations .thank you so much Aacharya ji for being in our lives. . No words only pure waves….. Prnam???

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